रक्षा के लिए यूं तो बजट का आठवां हिस्सा रखा जाता है मगर यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का शायद 2 से 2.4 फीसदी ही होता है। इसमें 2.4 फीसदी का आंकड़ा 2023 के लिए स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष के लिए इसमें एक अंक का मामूली इजाफा महंगाई से निपटने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। संक्षेप में कहें तो रक्षा क्षेत्र के लिए 6.21 लाख करोड़ रुपये के आवंटन के बाद भी हम काफी पीछे हैं क्योंकि हमारे पड़ोस में सुरक्षा संबंधी चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं।
बीते कुछ सालों में बाहरी सुरक्षा को खतरे बढ़े हैं मगर हमारी क्षमता या तो उतनी ही रही हैं या कम हो गई हैं। लद्दाख में गश्त के अधिकार पर चीन के साथ समझौता हुआ है मगर वह देश बड़ा खतरा बना हुआ है। वह उन्नत लड़ाकू विमानों में तेजी से निवेश कर रहा है और हमारे हवाई रक्षा बेड़े की मजबूती कम हो रही है। चीन के युद्धपोत भी जल्दी ही हिंद महासागर में मंडराने लगेंगे और हमारे लिए खतरा बनेंगे।
पाकिस्तान इस बीच चीन का पिछलग्गू बना हुआ है लेकिन पूर्व दिशा में हमारे लिए बड़ी चुनौती खड़ी हुई है। बांग्लादेश में शायद अमेरिका की शह पर सत्ता परिवर्तन हुआ है, जिससे समूचे पूर्वोत्तर भारत में घुसपैठ और जिहादी आतंकवाद का खतरा बढ़ गया है। सैन्य बल पहले 'ढाई मोर्चे' (पाकिस्तान, चीन और आंतरिक सुरक्षा के खतरे) पर युद्ध के लिए तैयारी कर रहे थे मगर अब बढ़े खतरे को देखकर हमें 'साढ़े तीन मोर्चे' (बांग्लादेश को मिलाकर) पर लड़ने की तैयारी रखनी होगी।
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कोहरे से 500 उड़ानें, 24 ट्रेनें प्रभावित
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कुशल पेशेवर दोनों देशों के लिए मददगार
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आगामी बजट में रक्षा क्षेत्र पर हो विशेष ध्यान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पास इस बार पहले जैसा या एक ही लीक पर चलने वाला बजट पेश करने का विकल्प नहीं है। वृद्धि, रोजगार, बुनियादी ढांचे और राजकोषीय संतुलन पर जोर तो हमेशा ही बना रहेगा मगर 2025-26 के बजट में उस पर ध्यान देने की जरूरत है, जिसे बहुत पहले तवज्जो मिल जानी चाहिए थीः बाह्य और आंतरिक सुरक्षा।
महिला मतदाताओं की बढ़ती अहमियत
पहली नजर में तो यह चुनाव जीतने का नया और शानदार सियासी नुस्खा नजर आता है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए नकद बांटो, परिवहन मुफ्त कर दो और सार्वजनिक स्थानों तथा परिवारों के भीतर सुरक्षा पक्की कर दो। बस, वोटों की झड़ी लग जाएगी। यहां बुनियादी सोच यह है कि महिला मतदाता अब परिवार के पुरुषों के कहने पर वोट नहीं देतीं। अब वे अपनी समझ से काम करती हैं और रोजगार, आर्थिक आजादी, परिवार के कल्याण तथा अपने अरमानों को ध्यान में रखकर ही वोट देती हैं।
श्रम मंत्रालय तैयार कर रहा है रूपरेखा
गिग वर्कर की सामाजिक सुरक्षा
भारत के गांवों में गरीबी घटी
वित्त वर्ष 2024 में पहली बार गरीबी अनुपात 5 प्रतिशत से नीचे गिरकर 4.86 प्रतिशत पर आ गया, जो वित्त वर्ष 2023 में 7.2 प्रतिशत था