कई बार कहा गया है कि उनकी पार्टी ही उन्हें हद में रखेगी, कि उन्हें काम करने के लिए कांग्रेस की मंजूरी चाहिए होगी, कि कानून को खुल्लमखुल्ला ताक पर रखने वाले उनके काम अदालत में नहीं टिक पाएंगे, कि देश की सरकार इतनी बड़ी और फैली हुई है कि वह केवल एक आदमी के इशारों पर नहीं चल सकती।
सच कहें तो उनके पहले कार्यकाल के अनुभवों ने इनमें से हरेक दावे को गलत साबित नहीं किया। रिपब्लिकन पार्टी ने ज्यादा विरोध नहीं किया और दोनों महाभियोगों में उनके पक्ष में एकमुश्त मतदान किया। किंतु कुछ मुस्लिम बहुसंख्यक देशों से लोगों के अमेरिका आने पर प्रतिबंध लगाने जैसे उनके कुछ बेहद विवादित फैसलों पर अदालत में सुनवाई हुई। उनके कैबिनेट के कई सदस्य चुपचाप अपना काम करते रहे और कम से कम एक ने उन्हें सियासी तौर पर मदद करने के बजाय इस्तीफा दे दिया।
जब 2020 में ट्रंप चुनाव हारे तो इन बातों ने ही हमें यह मानने पर मजबूर किया कि अमेरिकी संस्थाएं अपनी सबसे बड़ी परीक्षा में सफल हो गई हैं। लेकिन जाहिर तौर पर हम गलत थे। संस्थाओं के लिए सबसे कड़ी परीक्षा तब नहीं होती, जब कोई निर्वाचित नेता उन्हें कमतर बनाने की कोशिश करता है। असली परीक्षा तब होती है, जब वह नेता दोबारा चुन लिया जाता है। उस वक्त उन संस्थाओं में शामिल लोग और उन्हें स्वतंत्र बनाए रखने के लिए ऊर्जा खपाने और काम करने वाले लोग हथियार डालने लगते हैं।
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