अर्थव्यवस्था पर विदेशी कर्ज का बोझ
Jansatta|December 26, 2024
विश्व बैंक की रपट के कुछ आंकड़े चिंता पैदा करते हैं। भारत पर बाहरी वित्तीय ऋण के ब्याज की लागत पिछले एक वर्ष में 90 फीसद से अधिक बढ़ गई है। वर्ष 2022-23 में ब्याज की लागत 23 फीसद के आसपास थी, जो अब 92 फीसद दर्ज हुई है।
परमजीत सिंह वोहरा
अर्थव्यवस्था पर विदेशी कर्ज का बोझ

इन दिनों विश्व बैंक की एक रपट काफी चर्चा में है, जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था पर लगातार बढ़ रहे बाहरी वित्तीय ऋण के प्रभावों को दर्शाया गया है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि भारत पर बाहरी वित्तीय ऋण के पुनर्भुगतान का दबाव लगातार बना हुआ है और इसके विभिन्न तरह के आर्थिक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर देखे जा सकते हैं। इस रपट में विश्व बैंक ने निम्न मध्यवर्गीय आय वाले 109 मुल्कों को उनकी अर्थव्यवस्था में बाहरी वित्तीय ऋण के प्रभाव को विश्लेषित किया है। यह बताना भी आवश्यक है कि विश्व बैंक की सोच के मद्देनजर निम्न मध्यवर्गीय आय वाले देश वे सब हैं, जहां प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 1100 डालर से लेकर 4515 डालर के मध्य है। इस रपट के मुताबिक बीते दस वर्षों में इन देशों पर भारी वित्तीय ऋण का भार 55 फीसद की दर से बढ़ गया है। वर्ष 2013 में इन देशों पर बाहरी वित्तीय ऋण 5713 अरब डालर था, जो वर्ष 2023 के अंत तक बढ़ कर 8837 अरब डालर पर पहुंच गया।

वर्ष 2021 में इस वित्तीय ऋण में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई थी। कोरोना काल के कारण तब स्थिति गंभीर थी । विश्व बैंक की रपट के कुछ आंकड़े चिंता पैदा करते हैं कि भारत पर बाहरी वित्तीय ऋण के ब्याज की लागत पिछले एक वर्ष में 90 फीसद से अधिक बढ़ गई है। वर्ष 2022-23 में ब्याज की लागत 23 फीसद के आसपास थी, जो अब 92 फीसद दर्ज हुई है। विश्व बैंक की यह रपट कैलेंडर वर्ष की गणना के मुताबिक है। इस आंकड़े से स्पष्ट है कि अगर एक वर्ष में ऋण की लागत या ब्याज का पुनर्भुगतान करीब दोगुना देना पड़े, तो यकीनन इसका नकारात्मक प्रभाव आने वाले समय में अर्थव्यवस्था में विकास की दर पर भी देखने को मिलेगा।

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