सावन-भादौ में राधा-कृष्णमय हो जाती है ब्रजभूमि
Jyotish Sagar|September 2022
राधाष्टमी पर विशेष
ज्योति प्रकाश खरे
सावन-भादौ में राधा-कृष्णमय हो जाती है ब्रजभूमि

सावन-भादों के आते ही लोगों का मन बरबस ब्रज भूमि की ओर खिंचने लगता हैं। ब्रज, वह पावन तीर्थ जहाँ श्रीकृष्ण और उनकी आल्हादिनी शक्ति श्री राधेरानी ने रास रचाया था, वहां श्यामा श्याम की युगल जोड़ी ने अपनी दिव्य लीलाओं से ब्रज के कण-कण को प्रेम और भक्ति के रंग से सराबोर कर दिया था। श्रीकृष्ण और राधा के क्रीड़ा-स्थल गोकुल, मथुरा, गोवर्धन, बरसाना, वृंदावन, नंदगांव सब ब्रज में ही तो है। ब्रज का वह बालकृष्ण जो तेरह वर्ष की आयु में ब्रज को सदा के लिए छोड़कर द्वारका चला गया, किन्तु दस-बारह वर्ष की आयु तक ही उसने ब्रज में ऐसे-ऐसे अद्भुत कौतुक कर दिखाये कि 'यशोदा का नन्दन, गोपियों का जीवन-धन, श्री राधे का प्राणाधार, गउओं का गोपाल, ब्रजवासियों का गोवर्धनधारी, ब्रजवनिताओं का माखन चोर और कंस का संहारक बन गया।

लालित्य और माधुर्य का ऐसा उदाहरण विश्व में और है कहाँ?

ब्रज के छोरा ने बाल-रूप में ही देवराज के इन्द्र का मानमर्दन किया, ब्रह्मा को आश्चर्यचकित किया, कालिया नाग को वश में किया और पूतना, अधासुर, केशी, चाणूर, मुष्टिक जैसे असुरों का विनाश कर दिया। मुरली बजाई तो तीनों लोक मोह लिए, महारास रचाया तो चन्द्रमा की गति हर ली और उस पर भी ऐसा देवता, ऐसा भगवान् कि उसे सखा-भाव से पूजो, चाहे सखी भाव से, दास भाव से रिझाओ या दिव्य भाव से। नाचकर मनाओ या गाकर। भक्तिभाव से पूजो या केवल भावना से। वह हर रूप और हर रंग में आपके साथ है। लालित्य और माधुर्य का ऐसा उदाहरण विश्व में और है कहाँ?

ऐसे मनमोहन को भला कौन भुला सकता है?

श्रीकृष्ण और राधा की मधुर लीलाओं को गाकर जयदेव संस्कृत साहित्य के अविस्मरणीय कवि बन गये, विद्यापति मैथिल कोकिल बन गये, अंधे सूरदास विश्व के महान् कवि बन गये, स्वामी हरिदास संगीत के अवतार बन गये। मीरां जिसके लिए दीवानी होकर वृन्दावन की निकुंजों में, गैल-गलियारों में नाचती रही। रसखान ने गोकुल के ग्वारियाओं के बीच जीवन काटना पसंद किया। ताजबीबी ने मुगलानी होकर भी हिन्दुओं जैसा जीवन काटने की घोषणा की, ऐसे मनमोहन को भला कौन भुला सकता है?

सदियों से भक्तों के आकर्षण का केन्द्र रही कन्हैया की क्रीड़ा भूमि

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