ऋषि-मुनियों की तपोस्थली है ऋषिकेश
Jyotish Sagar|January 2023
भारतीय संस्कृति की गौरवगाथा कहती पतित पावनी गंगा हिमालय की गोद से उतरकर, जिस स्थान से मैदानों की ओर बढ़ती है, उसी का नाम ‘ऋषिकेश' है। ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही इस पवित्र आध्यात्मिक तीर्थनगरी में चित्त को अपूर्व शान्ति मिलती है। नाम के अनुरूप ऋषिकेश आज भी हमारी गौरवशाली धार्मिक परम्पराओं और सांस्कृतिक पहचान को सहेजकर रखे हुए है।
ज्योतिप्रकाश खरे
ऋषि-मुनियों की तपोस्थली है ऋषिकेश

चार धामों बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री तथा सिखों के पवित्र तीर्थस्थल हेमकुण्ड साहिब की यात्रा पर जाने वाले यात्रियों का अन्तिम पड़ाव ऋषिकेश है। इस तरह यह भी कहा जा सकता है कि इस नगरी का जनजीवन और अस्तित्व प्रत्यक्ष रूप से यहाँ आने वाले यात्रियों की आवाजाही पर निर्भर है। 

हजारों वर्ष पुरानी इस नगरी के बारे में किंवदन्ती है कि भगीरथ ऋषि के आग्रह पर भगवान् शिव ने गंगा को अपने केशों में थामकर पृथ्वी पर छोड़ने को निर्णय लिया था और भगवान् शिव की जटा से निकलकर गंगा सर्वप्रथम पृथ्वी पर उतरीं, तो उस स्थान को 'ऋषि नगरी' माना गया। आज भी कहा जाता है कि हिमालय पर्वत भगवान् शिव है और गंगा उनके केशों से यही उतरी हैं। ऋषि-मुनियों ने गंगा अवतरण के इस पवित्र स्थान पर सहस्त्रों वर्षों तक तपस्या की और उसी तप का प्रताप है कि आज भी गंगा तट पर बसी इस नगरी में आध्यात्मिकता की अनुभूति होती है।

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