उदारीकरण के बिना कैसे आती दूरसंचार क्रान्ति
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डिजिटल तकनीक-८
बालेन्दु शर्मा दाधीच
उदारीकरण के बिना कैसे आती दूरसंचार क्रान्ति

दूरसंचार क्रान्ति की शुरूआत में निजी क्षेत्र को प्रवेश देने का सिलसिला १६८४ में सबस्क्राइबर टर्मिनल उपकरणों के विनिर्माण की इजाजत के साथ शुरू हुआ था । लगभग सात साल बाद, पी.वी. नरसिंह राव के प्रधानमंत्री काल में बहुत सारे क्षेत्रों में सरकारी अंकुश हटाए जाने लगे और निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खुल रहे थे। १६६१ में दूरसंचार उपकरणों के निर्माण का क्षेत्र देसी-विदेशी कम्पनियों के लिए खोल दिया गया जब एल्काटेल, एटी एंड टी, एरिक्सन, फुजित्सु और सीमेन्स जैसी कम्पनियाँ भारत आयीं। उदारीकरण और वैश्वीकरण के इस शुरूआती दौर में नई दूरसंचार नीति आई, २७ शहरों में रेडियो पेजिंग के लाइसेंस दिए गए और मूलभूत टेलीफोन सुविधाओं के क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र को आमंत्रित कर दिया गया। नवम्बर १६६४ में चार महानगरों में सेल्युलर मोबाइल सेवाओं के लाइसेन्स दिए गए। विकास और उदारीकरण का सिलसिला अटल बिहारी वाजपेयी के दूसरे प्रधानमंत्री काल में और आगे बढ़ा जब १६६६ में राष्ट्रीय दूरसंचार नीति आयी और दूरसंचार क्षेत्र के सुधारों ने मजबूती हासिल की। तब से २जी, ३जी और ४जी से होते हुए जमाना ५जी तक आ पहुँचा है और हम लैंडलाइनों से होते हुए मोबाइल फीचर फोन और स्मार्ट फोन के दौर में आ पहुँचे हैं।

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