धर्मांतरण आज देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। हाल ही में उच्चतम अदालत ने इस बात को गम्भीरता से लेते हुए कहा कि 'जबरन धर्मांतरण न सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा हो सकता है। इसे नहीं रोका गया तो बहुत मुश्किल परिस्थितियाँ खड़ी हो जायेंगी। केन्द्र सरकार इसे रोकने के लिए कदम उठाये और इस दिशा में गम्भीर प्रयास करे।'
केन्द्र सरकार की तरफ से अदालत में यह बात रखी गयी कि 'ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ चावल, गेहूँ आदि देकर धर्म-परिवर्तन कराये जा रहे हैं।'
अदालत आज इस मुद्दे को उठा रही है पर दूरद्रष्टा ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापूजी ने तो धर्मांतरण की कूटनीति को आज से कई दशक पूर्व ही भाँप लिया था। जब भारत में धर्मांतरण-कार्य करनेवाली मिशनरियाँ अपने पाँव जमा रही थीं उस समय से ही पूज्य बापूजी ने उसको रोकने के लिए भगीरथ प्रयास किये। संतश्री ने दूर-दराज के पिछड़े, गरीब, आदिवासी क्षेत्र, जहाँ लोगों को रोटी का लालच दिखाकर, उनकी मजबूरी का फायदा उठा के धर्मांतरित किया जाता है, उन क्षेत्रों में सत्संग, कीर्तन, सत्साहित्य - वितरण आदि के माध्यम से लोगों में धर्मनिष्ठा, स्वधर्मपालन जैसे संस्कारों का सिंचन किया, उन्हें व्यसनों, कुरीतियों से बचने हेतु प्रेरित किया, सनातन धर्म की महिमा बताकर व आत्मोन्नतिकारक कुंजियाँ दे के उनको धर्मांतरण का शिकार होने से बचाया और उन्नत जीवन की ओर अग्रसर किया। गरीबों, आदिवासियों के दुःख-दर्द को समझा, उन्हें आत्मिक प्रेम दिया, उनको येन-केन प्रकारेण मददरूप हुए... फिर चाहे उनकी रोजी-रोटी की व्यवस्था के लिए ‘भजन करो, भोजन करो, पैसा पाओ' योजना चलाना हो, अनाज आदि जीवनोपयोगी सामग्री बँटवाना व आर्थिक सहायता गृति करना हो, निराश्रितों के लिए मकान बनवाना हो, दूरदराज के क्षेत्रों में चलचिकित्सालय चलवाना हो, शिक्षा, सुसंस्कार-सिंचन व विद्यार्थी-उपयोगी सामग्री का वितरण हो...। और ये कार्य किसी क्षेत्र - विशेष में ही नहीं चले बल्कि देशभर में फैले पूज्य बापूजी के साधकों ने अपनेअपने क्षेत्रों में सुचारु रूप से इन कार्यों का संचालन किया।
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