होलिकां आगतां दृष्ट्वा हृदये हर्षन्ति मानवाः ।
होलिका आने पर हृदय में हर्ष होता है। हर्ष, प्रसन्नता अनिवार्य है परंतु अगर सावधान नहीं रहे, हर्ष को गलत साधनों से प्राप्त किया तो पतन होता है और हर्ष को ऊँचे साधनों से प्राप्त करते हैं तो उत्थान होता है। जैसे यह पर्व लोग मनाते हैं तो डामर (coal tar) मुँह पर लगा देते हैं या गंदे-गंदे अश्लील गाने गाते हैं अथवा एक-दूसरे को जूतों का वीभत्स हार पहना देते हैं। ना-ना ! इस उत्सव का फायदा उठाना चाहिए, इस उत्सव से किसीको नुकसान नहीं पहुँचना चाहिए।
जीवन में थोड़ा शौर्य होना चाहिए, थोड़ा आत्मबल होना चाहिए । कोई भी किसी भी रीति से लकड़ी लेकर चलाये तो अपन पशु थोड़े ही हैं कि चलते जायें ! ‘जो धर्म के अनुकूल होगा वह करेंगे, जो धर्म के प्रतिकूल होगा वह नहीं करेंगे । जिससे हमारा, पड़ोसी का, समाज का और देश का हित होगा वह करेंगे, बाकी का हम नहीं करेंगे ।' ऐसी जीवन में हिम्मत होनी चाहिए।
इससे अपना व समाज का कल्याण हो जायेगा
अगर अपना और समाज का कल्याण चाहें तो होली के दिनों में फाल्गुन शुक्ल एकादशी (आमलकी एकादशी) से लेकर दूज (चैत्र शुक्ल द्वितीया) तक २०-२१ दिनों का उत्सव मनाना चाहिए। इन दिनों में बालकों व युवकों को सेवाकार्य ढूँढ़ लेना चाहिए। जो शराब पीते हैं ऐसों को समझायें और उनको भी अपने साथ लेकर प्रभातफेरी निकालें। प्रभात में सात्त्विक वातावरण का भी लाभ मिलेगा, हरिनाम के कीर्तन का भी लाभ मिलेगा। 'यह हृदय के आनंद को उभारने का, रामनाम की प्यालियाँ पीने का उत्सव है, न कि अल्कोहल (शराब) का जहर पी के अपना खानदान बरबाद करने का उत्सव है' - ऐसा प्रेमपूर्वक समझा के वे बालक और युवान दूसरे बालकों और युवानों को सुमार्ग में लगाने की सेवा कर सकते हैं।
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अद्भुत हैं आँवले के धार्मिक व स्वास्थ्य लाभ!
पद्म पुराण के सृष्टि खंड में भगवान शिवजी कार्तिकेयजी से कहते हैं : \"आँवला खाने से आयु बढ़ती है। उसका जल पीने से धर्म-संचय होता है और उसके द्वारा स्नान करने से दरिद्रता दूर होती है तथा सब प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं। कार्तिकेय ! जिस घर में आँवला सदा विद्यमान रहता है वहाँ दैत्य और राक्षस नहीं जाते। एकादशी के दिन यदि एक ही आँवला मिल जाय तो उसके सामने गंगा, गया, काशी, पुष्कर विशेष महत्त्व नहीं रखते। जो दोनों पक्षों की एकादशी को आँवले से स्नान करता है उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं।\"
पादपश्चिमोत्तानासन : एक ईश्वरीय वरदान
'जीवन जीने की कला' श्रृंखला में इस अंक में हम जानेंगे पादपश्चिमोत्तानासन के बारे में। सब आसनों में यह आसन प्रधान है। इसके अभ्यास से कायाकल्प हो जाता है। पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत में आता है :
आयु-आरोग्य, यश बढ़ानेवाला तथा पितरों की सद्गति करनेवाला व्रत
२८ सितम्बर : इंदिरा एकादशी पर विशेष
मन पर नियंत्रण का परिणाम
महात्मा गांधी जयंती : २ अक्टूबर
संग का प्रभाव
कैकेयी बुरी नहीं थी। मंथरा की संगत ने उसे पाप के मार्ग पर चला दिया। रावण के जीवन को पढ़ो। अच्छा-भला वेदों का पंडित, अपने कर्तव्य पर चलनेवाला विद्वान था वह। शूर्पणखा नाशिक के वनों से होती हुई लंका पहुँची और उसने रावण से कहा : \"भैया ! एक अत्यंत रूपवती रमणी को देखकर आयी हूँ। वह बिल्कुल तुम्हारे योग्य है। दो वनवासी उसके साथ हैं, तीसरा कोई नहीं है। यदि तुम ला सको तो...\"
साध्वी रेखा बहन द्वारा बताये गये पूज्य बापूजी के संस्मरण
(गतांक के 'कृपासिंधु गुरुवर सिखाते व्यवहार में वेदांत' से आगे)
वास्तविक विजय प्राप्त कर लो
१२ अक्टूबर : विजयादशमी पर विशेष
ॐकार-उच्चारण का हैरतअंगेज करिश्मा!
एक ए. सी. पी. का निजी अनुभव
सच्चे संत स्वयं कष्ट सहकर भी सत्य की रक्षा करते हैं
आज हम देखते हैं कि धर्म-विरोधी तत्त्वों द्वारा साजिश के तहत हमारे निर्दोष हिन्दू साधु-संतों की छवि धूमिल करके उनको फँसाया जा रहा है, उन्हें कारागार में रखा जा रहा है। ऐसी ही एक घटना का उल्लेख स्वामी अखंडानंदजी के सत्संग में आता है, जिसमें एक संत की रिहाई के लिए एक अन्य संत के कष्ट सहन की पावन गाथा प्रेरणा-दीप बनकर उभर आती है :
विषनाशक एवं स्वास्थ्यवर्धक चौलाई के अनूठे लाभ
बारह महीनों उपलब्ध होनेवाली तथा हरी सब्जियों में उच्च स्थान प्राप्त करनेवाली चौलाई एक श्रेष्ठ पथ्यकर सब्जी है। यह दो प्रकार की होती है : लाल पत्तेवाली और हरे पत्तेवाली।