आया, बैठा और पा के मुक्त हो गया
Rishi Prasad Hindi|May 2023
एक दिन महात्मा बुद्ध अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठे थे, उनका शिष्य आनंद अंदर था। एक व्यक्ति आया, बोला : ‘"भंते ! मैं आपके पास वह बात सुनने को आया हूँ जो कही नहीं जाती है, वह बात समझने को आया हूँ जो समझायी नहीं जाती, मैं उसको जानने को आया हूँ जिसको जाननेवाला स्वयं रहता नहीं।" 
आया, बैठा और पा के मुक्त हो गया

उसने अहोभाव से, धन्यवाद से बुद्ध की तरफ देखा, बुद्ध ने उसकी तरफ देखा। बुद्ध के नेत्र बंद हो गये, उस व्यक्ति की भी आँखें बंद हो गयीं।

आनंद ने दूर से झाँका तो सोचने लगा, 'वह व्यक्ति चुप है; भंते के हाथ नहीं हिलते, होंठ भी नहीं हिलते, क्या बात है ? हो सकता है भंते ध्यान में हों और वह व्यक्ति कल्पनाओं के राज्य में खो गया हो।'

भगवान कहते हैं :

प्रशान्तात्मा विगतभीब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।

मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ॥

'योगी को प्रशांतचित्त, निर्भय, ब्रह्मचारी के व्रत में स्थित हो के और मन को संयत करके मेरे में ही चित्त लगाकर एवं मुझको ही अपना परम पुरुषार्थ समझते हुए योगयुक्त हो के बैठना चाहिए।' (गीता : ६.१४)

प्रशांतात्मा... शांत नहीं, प्रशांत आत्मा। शांत तो थोड़ी देर के लिए हो जाते हैं परंतु ठीक से शांत... प्रशांत ! जैसे ब्रह्मचारी अपने गुरु के आश्रम में रमण करता है ऐसे ही श्रमरहित विश्राम में रमण करने की अवस्थावाले को बोलते हैं 'प्रशांतात्मा'। आपाधापी - आपाधापी, हाय-हाय, यह वह...नहीं। 

बोले : 'मेरा जिगरी दोस्त मर गया इसलिए रो रहा हूँ।'

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