जी हाँ, पूज्य संत श्री आशारामजी बापू, जिन्होंने भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज की कृपा से २३ वर्ष की अल्पायु में ही आत्मसाक्षात्कार का उच्चतम लक्ष्य प्राप्त कर लिया। हर कोई चाहता है कि हमें भी परमानंद, परम सुख की प्राप्ति हो और कम-सेकम समय में हो। तो आइये दृष्टि डालते हैं पूज्य बापूजी के साधनाकाल पर कि कैसे इतने कम समय में सद्गुरु की पूर्ण प्रसन्नता को प्राप्त करने में पूज्यश्री सफल हो गये।
बापूजी के दिन-दिन बढ़ते विवेक-वैराग्य प्रभुप्राप्ति की लालसा ने युवावस्था में ही उन्हें नैनीताल के जंगल में सद्गुरु साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के आश्रम में पहुँचाया।
इस आश्रम के निकट एक मठाधीश, जो अपने चमत्कारों के कारण प्रसिद्ध था, का आश्रम था। पूज्यश्री से उसकी भेंट हुई। बापूजी का प्रभावशाली व्यक्तित्व व भगवत्प्राप्ति की तड़प देखकर वह बहुत प्रभावित हुआ। उसने पूज्यश्री का खूब आदर-सत्कार किया और भोजन भी कराया। बात-बात में जब भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज का नाम निकला तो मठाधीश के चेहरे पर जरा-सी शिकन आयी और उसने महाराजश्री के लिए अपनी निम्न सोच से सिक्त वचन बोलना शुरू किया। बस, आप तुरंत वहाँ से उठे और चल दिये, पीछे मुड़ के नहीं देखा... न देखी उसकी सिद्धि न देखी प्रसिद्धि ! अपने गुरुदेव के प्रति कैसी अडिग श्रद्धा, एकनिष्ठा, वफादारी! यही एकनिष्ठा पूज्य बापूजी के अनेकानेक शिष्यों के भी जीवन में झलकती है।
भगवान शिवजी का पूजन आदि करने के बाद ही कुछ खाने-पीने का पूज्यश्री का नियम था। आप अपने साथ गुरुआश्रम में पूजन-सामग्री लेकर गये थे। एक दिन शिवजी की प्रतिमा और पूजन की सामग्री एक गुरुभाई ने छिपा दी। फिर वही गुरुभाई मजाकिया लहजे में कहता है कि "साँईं ! इसका भगवान चोरी हो गया है !” तो साँईं लीलाशाहजी ने व्यंग्य कसते हुए कहा : ‘‘भगवान की चोरी हो गयी ! वाह भाई वाह ! जो चोरी हो जाय ऐसा कैसा भगवान?”
गुरुभाई का साथ देते हुए सद्गुरु भी ऐसा व्यंग्य कर रहे थे। कैसा होगा वह दृश्य, कल्पना कीजिये। लेकिन पूज्यश्री के हृदय में लेशमात्र भी फरियाद का भाव नहीं आया। यही है सत्शिष्य का हृदय!
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ज्ञान के दीप, भक्ति के पुंज व सेवा की ज्योति से सजी दिवाली
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि | हमारी संस्कृति के पावन पर्व दीपावली पर दीप जलाने की परम्परा के पीछे अज्ञान-अंधकार को मिटाकर आत्मप्रकाश जगाने का सूक्ष्म संकेत है। १ से ७ नवम्बर तक अहमदाबाद आश्रम में हुए 'दीपावली अनुष्ठान एवं ध्यान योग शिविर' में उपस्थित हजारों शिविरार्थियों ने हमारे महापुरुषों के अनुसार इस पर्व का लाभ उठाया एवं अपने हृदय में ज्ञान व भक्ति के दीप प्रज्वलित कर आध्यात्मिक दिवाली मनायी।
पुत्रप्राप्ति आदि मनोरथ पूर्ण करनेवाला एवं समस्त पापनाशक व्रत
१० जनवरी को पुत्रदा एकादशी है। इसके माहात्म्य के बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत में आता है :
पंचकोष-साक्षी शंका-समाधान
(पिछले अंक में आपने पंचकोष-साक्षी विवेक के अंतर्गत जाना कि पंचकोषों का साक्षी आत्मा उनसे पृथक् है । उसी क्रम में अब आगे...)
कुत्ते, बिल्ली पालने का शौक देता है गम्भीर बीमारियों का शॉक!
कुत्ते, बिल्ली पालने के शौकीन सावधान हो जायें !...
हिम्मत करें और ठान लें तो क्या नहीं हो सकता!
मनुष्य में बहुत सारी शक्तियाँ छुपी हुई हैं। हिम्मत करे तो लाख-दो लाख रुपये की नौकरी मिलना तो क्या, दुकान का, कारखाने का स्वामी बनना तो क्या, त्रिलोकी के स्वामी को भी प्रकट कर सकता है, ध्रुव को देखो, प्रह्लाद को, मीरा को देखो।
पुण्यात्मा कर्मयोगियों के नाम पूज्य बापूजी का संदेश
'अखिल भारतीय वार्षिक ऋषि प्रसाद-ऋषि दर्शन सम्मेलन २०२५' पर विशेष
मकर संक्रांति : स्नान, दान, स्वास्थ्य, समरसता, सुविकास का पर्व
१४ जनवरी मकर संक्रांति पर विशेष
समाजसेवा व परदुःखकातरता की जीवंत मूर्ति
२५ दिसम्बर को मदनमोहन मालवीयजी की जयंती है। मालवीयजी कर्तव्यनिष्ठा के आदर्श थे। वे अपना प्रत्येक कार्य ईश्वर-उपासना समझकर बड़ी ही तत्परता, लगन व निष्ठा से करते थे। मानवीय संवेदना उनमें कूट-कूटकर भरी थी।
संतों की रक्षा कीजिये, आपका राज्य निष्कंटक हो जायेगा
आप कहते हैं... क्या पुरातत्त्व विभाग के खंडहर और जीर्ण-शीर्ण इमारतें ही राष्ट्र की धरोहर हैं? ... राष्ट्रसेवा करने का सनातनियों ने उन्हें यही फल दिया !
ब्रह्मवेत्ता संत तीर्थों में क्यों जाते हैं?
एक बड़े नगर में स्वामी शरणानंदजी का सत्संग चल रहा था। जब वे प्रवचन पूरा कर चुके तो मंच पर उपस्थित संत पथिकजी ने पूछा कि ‘“महाराज ! आप जो कुछ कहते हैं वही सत्य है क्या?\"