डांग संवाददाता। सनातन धर्म की एक पवित्र परम्परा है 'विवाह'। अग्नि को साक्षी मानकर शास्त्रोक्त विधि से विवाह करने के पश्चात् ही वर और वधू गृहस्थ धर्म का पालन करने के अधिकारी होते हैं। परंतु आज कई जगह, विशेषकर आदिवासी, वनवासी क्षेत्रों में गरीबी व वैदिक रीतिरिवाजों की अनभिज्ञता के कारण लोग विधिवत् विवाह नहीं कर पाते हैं । ऐसे गरीब विवाहित दम्पतियों के धर्म-मर्यादारहित जीवन का फायदा उठाकर ईसाई मिशनरियाँ प्रलोभन द्वारा बड़े पैमाने पर उन्हें धर्मांतरण का शिकार बना रही हैं।
धर्मांतरणरूपी सामाजिक विकृति को हटाने व इसके विषवृक्ष की फैलती जड़ों को काट के धर्म-जागृति करने हेतु पूज्य बापूजी की प्रेरणा व मार्गदर्शन में पिछले ६ दशकों से देशभर में अनेकानेक सशक्त प्रकल्प चलाये जा रहे हैं। इसी कड़ी में गुजरात के धर्मांतरणग्रस्त डांग जिले के के जामलापाड़ा गाँव में संत श्री आशारामजी आश्रम, आश्रम की समिति, साधकों व अन्य ६ धार्मिक संस्थाओं ने मिलकर वैदिक विधि से १४१ जोड़ों का विवाह संस्कार कराया। इन जोड़ों को देने के लिए एक विशेष किट बनायी थी।
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
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समर्थ साँईं लीलाशाहजी की अद्भुत लीला
साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर विशेष
धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।