ये सब बातें अपनी माता सुवर्चा से बालक पिप्पलाद ने सुनीं। अपने पिता दधीचि का घात करनेवाले देवताओं पर उन्हें बड़ा क्रोध आया कि 'स्वार्थवश ये देवता मेरे तपस्वी पिता से उनकी हड्डियाँ माँगने में भी लज्जित नहीं हुए!'
पिप्पलाद ने सभी देवताओं को नष्ट कर देने का संकल्प करके गौतमी नदी के तट पर तपस्या प्रारम्भ कर दी। दीर्घकाल बीतने के बाद भगवान शंकर ने दर्शन देकर कहा : "बेटा! वर माँगो।"
पिप्पलाद बोले : "प्रलयंकर प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो अपना तृतीय नेत्र खोलें और स्वार्थी देवताओं को भस्म कर दें।"
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।