गुरुमूर्ति के ध्यान से मिली सम्पूर्ण सुरक्षा
Rishi Prasad Hindi|June 2024
अनंत-अनंत ब्रह्मांडों में व्याप्त उस परमात्म-चेतना के साथ एकता साधे हुए ब्रह्मवेत्ता महापुरुष सशरीर ब्रह्म होते हैं। ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्... ऐसे चिन्मयस्वरूप गुरु के पूजन से, उनकी मूर्ति के ध्यान से शिष्य के अंतः स्थल में उनकी शक्ति प्रविष्ट होती है, जिससे उसके पूर्व के मलिन संस्कार नष्ट होने लगते हैं और जीवन सहज में ही ऊँचा उठने लगता है।
गुरुमूर्ति के ध्यान से मिली सम्पूर्ण सुरक्षा

इस सिद्धांत को प्रकट करती एक सत्य घटना बंगाल के प्रसिद्ध संत श्री विजयकृष्ण गोस्वामीजी के शिष्य कुलदानंद ब्रह्मचारी के जीवन से :

एक बार कुलदानंदजी के जीवन में ऐसा दौर आया जब वे गहरे साधना-संघर्ष से गुजर रहे थे। पूर्व के संस्कारों के कारण काम-वासना का प्रबल वेग उनके अंतःकरण में रह-रहकर उद्वेग करता था। उन्हें समझ में नहीं आता था कि 'क्या करें, कैसे लड़ें इस कामरूपी महाअसुर से?'

एक दिन उन्होंने अपनी विकलता अपने गुरुदेव विजयकृष्ण गोस्वामीजी के श्रीचरणों में निवेदित की। अपनी व्यथा कहते हुए वे बिलखबिलखकर रोने लगे और गुरुचरणों में गिर पड़े। उनके आँसुओं से गोस्वामीजी के चरण भीग गये।

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