इस सिद्धांत को प्रकट करती एक सत्य घटना बंगाल के प्रसिद्ध संत श्री विजयकृष्ण गोस्वामीजी के शिष्य कुलदानंद ब्रह्मचारी के जीवन से :
एक बार कुलदानंदजी के जीवन में ऐसा दौर आया जब वे गहरे साधना-संघर्ष से गुजर रहे थे। पूर्व के संस्कारों के कारण काम-वासना का प्रबल वेग उनके अंतःकरण में रह-रहकर उद्वेग करता था। उन्हें समझ में नहीं आता था कि 'क्या करें, कैसे लड़ें इस कामरूपी महाअसुर से?'
एक दिन उन्होंने अपनी विकलता अपने गुरुदेव विजयकृष्ण गोस्वामीजी के श्रीचरणों में निवेदित की। अपनी व्यथा कहते हुए वे बिलखबिलखकर रोने लगे और गुरुचरणों में गिर पड़े। उनके आँसुओं से गोस्वामीजी के चरण भीग गये।
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।