"मध्य प्रदेश में एक बड़ी रियासत थी। वहाँ एक महात्मा जेल में डाल दिये गये थे। वे स्वयं तो गाँजा नहीं पीते थे परंतु उनके फूल के बगीचे में गाँजे के पौधे लगे हुए थे, यही उनका अपराध था। जब हमारे महात्माजी (मधईपुर के ब्रह्मवेत्ता महात्मा) को मालूम पड़ा तो वे अकेले ही सैकड़ों मील की यात्रा कर वहाँ पहुँच गये। राजा के उद्यान में जाकर बैठ गये। शरीर पर लँगोटी के सिवाय और कुछ नहीं, धूल से लथपथ। राजा आया टहलने। उसके साथियों ने आकर बाबाजी से कहा : "तुम यहाँ से हट जाओ, राजा साहब आ रहे हैं।"
वे वहाँ से हटने को तैयार नहीं हुए। राजा टहलते हुए पास आ गया। उसने बाबाजी से पूछा : "तुम कौन हो?"
बोले : ‘“मैं तुम्हें क्या दिखता हूँ?"
राजा ने कहा : "मनुष्य।"
बाबाजी : ‘'तुम चमार हो।"
राजा के साथियों को बहुत बुरा लगा। वे उन्हें वहाँ से निकालने लगे। कुछ आपस में खींचातानी हुई। बाबाजी जानबूझकर गाली देने लगे। पहरेदार पकड़कर थाने ले गये। डिप्टी कलेक्टर के सामने पेश किये गये।
डिप्टी कलेक्टर ने पूछा: "महात्माजी ! आपने राजा को चमार क्यों कहा?"
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
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धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।