जो विद्वान होते हैं वे शोकग्रस्त कभी नहीं होते। उनकी हार कभी होती ही नहीं। वे दुःख के सामने हारते नहीं, वे भय के सामने हारते नहीं, मोह के सामने हारते नहीं। चरैवेति चरैवेति... उनका मंत्र होता है चलो चलो, चलो-चलो।
एक कथा है महाभारत के उद्योग पर्व में। एक था राजकुमार। जब उसके पिताजी की मृत्यु हो गयी तो उसके शत्रुओं ने उसको घेर लिया। उसकी सेना मजबूत नहीं थी और वह अभी समझता भी नहीं था कि क्या करना चाहिए? युद्ध में से भाग आया और घर में आकर सो गया। जब उसकी माता को मालूम पड़ा कि हमारा बेटा युद्ध में हार के घर में आकर सोया है, उसने उसको जगाया और बोली कि "बेटा ! तुम मनुष्य हो, सोने के लिए तुम्हारा जन्म नहीं हुआ। सोने के लिए तो अजगर पैदा होता है। प्रमाद करना या असावधान रहना भी एक प्रकार से सोना ही है।"
उसने उपदेश किया :
"उत्थातव्यं जागृतव्यं योक्तव्यं भूतिकर्मसु ॥
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
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(गतांक के 'साध्वी रेखा बहन द्वारा बताये गये पूज्य बापूजी के संस्मरण' का शेष)
समर्थ साँईं लीलाशाहजी की अद्भुत लीला
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धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।