भगवान को मानने और न मानने वालों को विश्वस्तरीय सर्वे के अनुसार विश्व में नास्तिकों का औसत हर साल बढ़ रहा है. नास्तिकों की सब से ज्यादा 50% संख्या चीन में है. भारत में भी नास्तिकों की संख्या बढ़ी है. इस के उलट पाकिस्तान में आस्तिकों की संख्या बढ़ी है. लेकिन अरबों की आबादी वाले देशों में महज कुछ लोगों की बातचीत के आधार पर एकाएक यह कैसे मान लिया जाए कि इन देशों में नास्तिकों अथवा आस्तिकों की संख्या परिवर्तित हो रही है?
आस्तिक और नास्तिकवाद के ताजा सूचकांक के मुताबिक इस तरह के भारतीयों ने भी बताया था कि वे धार्मिक नहीं और न ईश्वर में विश्वास रखते हैं. यह संख्या बढ़ रही है. पोप फ्रांसिस के देश अर्जेंटीना में खुद को धार्मिक कहने वालों की संख्या कम हुई है. इसी तरह खुद को धार्मिक बताने वालों की संख्या में दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, स्विट्जरलैंड, फ्रांस तथा वियतनाम में गिरावट भी आई है.
नास्तिक अथवा आस्तिकों की संख्या घटनेबढ़ने से देशों की सांस्कृतिक अस्मिताओं पर कोई ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में दुनिया की हकीकत यह है कि सहिष्णु शिक्षा के विस्तार और आधुनिकता के बावजूद धार्मिक कट्टरपन बढ़ रहा है, धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं.
यह कट्टरता इसलामिक देशों में कुछ ज्यादा ही देखने में आ रही है. कट्टरपंथी ताकतें अपने धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मान कर भिन्न धर्मावलंबियों को दबा कर धर्म परिवर्तन तक के लिए मजबूर करती रही है. भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ यही हो रहा है. कश्मीर क्षेत्र में मुसलिमों का जनसंख्या घनत्व बढ़ जाने से करीब साढ़े चार लाख कश्मीरी हिंदुओं को अपने पुश्तैनी घरों से खदेड़ दिया गया.
अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला
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