सहजन की वैज्ञानिक खेती तथा इसके गुण और उपयोग
Modern Kheti - Hindi|1st December 2022
सहजन का फूल फल और पत्तियों का भोजन के रूप में व्यवहार होता है। सहजन की छाल पत्ती बीज गोद जड़ आग से आयुर्वेदिक दवा तैयार किया जाता है जो लगभग 300 प्रकार की बीमारियों के इलाज में काम आता है सहजन के पौधे से गोदा निकालकर कपड़ा और कागज उद्योग के काम में व्यवहार किया जाता हैं।
आशीष कुमार वर्मा
सहजन की वैज्ञानिक खेती तथा इसके गुण और उपयोग

सहजन भारतीय किसानों के लिए सब्जी देने वाला बहुवर्षिक पौधा है! गाँवों में सहजन बिना किसी देख-भाल के किसान अपने घरों के आसपास एक-दो पेड़ लगा सकते हैं जिनका उपयोग सब्जी, अचार, बकरी के लिए हरे चारे के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। सहजन भारतीय मूल का मोरिन्गेसी परिवार का सदस्य हैं। इसका वानस्पतिक नाम मोरिन्गा ओलिफेरा हैं। इसकी उत्पत्ति भारत में हुई हैं। सहजन अपने विविध गुणों, सर्वव्यापी स्वीकार्यता और आसानी से उग आने के लिए जाना जाता है। यह कमजोर जमीन पर भी बिना सिंचाई के सालों भर हरा-भरा और तेजी से बढ़ने वाला पौधा है। हाल के दिनों सहजन वर्ष में दो बार फलने वाला तैयार किया गया है। सहजन की पत्ती, फल और फूल प्रोटीन, लवण, आयरन, विटामिन-बी और विटामिन-सी से भरपूर है। हरी पत्तियां सलाद के रूप में खाई जा सकती हैं।

सहजन में उपलब्ध पोषक तत्वों के जरिए 300 से भी अधिक बीमारियों का इलाज किया जाता है इस रिसर्च के मुताबिक सहजन की फलियों और पत्तियों में दूध की तुलना में चौगुना पोटैशियम व संतरा की तुलना में सात गुना विटामिन-सी पाया जाता है। सहजन सब्जी के रूप में उपयोग होता हैं। वहीं इसकी फली का सूप बहुत ही स्वादिष्ट होता है इसकी छाल, पत्ती, जड़ वगैरह से तमाम तरह की दवाएं, पाउडर, कैप्सूल, तेल आदि तैयार किया जाता हैं।

जलवायु: इसके पौधे सामान्य तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट पर उगाए जा सकते हैं। औसत तापमान पर सहजन के पौधों का काफी अच्छा विकास होता हैं। इसके पौधे ठंड को भी आसानी से सह सकते हैं पर फूल आते समय 40 डिग्री से ज्यादा तापमान पर फूल झड़ने लगता हैं। कम या ज्यादा बरसात से पौधे को कोई नुकसान नहीं होता हैं, वह विभिन्न अवस्थाओं में उगाने वाला पौधा हैं। 

सहजन की उन्नत किस्में: सहजन की फसल साल भर में सिर्फ एक बार ही वह भी कुछ ही महीने के लिए मिल जाती हैं। लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी प्रजातियां तैयार की हैं जो साल में दो बार फसल देने में सक्षम हैं। इन प्रजातियों में रोहित 1, धनराज, के एम 1, के एम 2, पी के एम 1, पी के एम 2 आदि प्रमुख हैं। 

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