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रबी सीजन में इस विधि से करें प्याज की बुवाई
अगर प्याज की खेती करने का विचार बना रहे हैं, तो आज हम आपके लिए रबी सीजन में प्याज की खेती से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं। आइये जानें, रबी सीजन में प्याज की अच्छी पैदावार के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना जरुरी होता है?
देश का भविष्य हैं प्रकृति की गोद में उगने वाले लंबे वनस्पतिक रेशे
भारत में जूट की खेती सदियों से होती चली आ रही है और यह उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध कराने तथा रोजगार के व्यापक अवसर पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती चली आ रही है। 60 के दशक के दौरान जूट भारत के लिए एक महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा अर्जक था और 70 के दशक के \"स्वर्णिम काल\" तक इस खेती में चतुर्मुखी विकास हुआ। 80 के दशक के दौरान गिरावट शुरू हुई और कृत्रिम तंतुओं से कठोर प्रतिस्पर्धा के कारण जूट का गौरव घट गया।
सब्जियों के उत्पादन का मूल्यवर्धन तकनीक, प्रतिबंध और समाधान
वैश्विक स्तर पर सब्जियों के उत्पादन और विविध सब्जी उत्पाद के कारोबार में व्यापक वृद्धि हुई है। बढ़ती आय, घटते परिवहन लागत, नई उन्नत प्रसंस्करण तकनीक और वैश्वीकरण ने इस विकास के लिए प्रेरित किया है। लेकिन यह वृद्धि, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और प्रसंस्करण के धीमी विकास से मेल नहीं करता है। क्षय को कम करने, विस्तार और विविधीकरण के लिए प्रोसैस्सिंग सबसे प्रभावी उपाय है। प्रसंस्करण गतिविधियां, ताजा उपज के लिए बाजार के अवसरों में वृद्धि करते हुए मूल्य वृद्धि करते हैं तथा पोस्टहर्स्ट हानियों को कम करते हैं।
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक गंभीर समस्या
विश्वभर में जलवायु परिवर्तन का विषय चर्चा का मुद्दा बना है। इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन वैश्विक समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती है तथा इससे निपटना वर्तमान समय की बड़ी जरुरत बन गई है।
टिकाऊ कृषि विकास के लिए मृदा स्वास्थ्य आवश्यक...
मृदा में उपस्थित जैविक कार्बन उसके प्राणों के समान है, जो मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को बनाए रखने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जलवायु परिवर्तन एवं वैश्विक ऊष्मीकरण ने जैविक कार्बन की ह्रास की दर को और अधिक गति प्रदान की है, जिस कारण मिट्टी की उर्वरता घट रही है। अतः मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखने एवं कार्बन प्रच्छादन को बढ़ाने के लिए अनुशंसित प्रबंधन विधियों को अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है।
सब्जी उत्पादन का बढ़ता रुझान
सब्जियां हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई हैं। सब्जियों से हमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होते हैं जैसे प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम इत्यादि । ये पोषक तत्व हमें शारीरिक रूप से मजबूत बनाए रखने और लंबा जीवन जीने में सहायक बनाते हैं।
सस्य क्रियाओं द्वारा कीट नियंत्रणः
सस्य क्रियाओं द्वारा कीट नियंत्रण, किसान अपना उत्पादन तथा आमदनी बढ़ाने के लिए फसल उत्पादन की समरत विधियों में तकनीकों का उपयोग करता है। इसके अन्तर्गत फसल की किस्म, बुआई का समय एवं विधि, भू-परिष्करण, खेत और खेती की स्वच्छता, उर्वरक प्रबंधन, जल प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन और कटाई का समय आदि का समावेश होता है।
बदलते मौसम के अनुसार नर्सरी प्रबंधन
नर्सरी प्रबंधन में प्रतिकूल मौसम के प्रभाव के कारण किसानों को पूरी फसल में नुकसान हो सकता है। इसके प्रबंधन के लिए उन्हें नई तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए जैसे कि प्रो ट्रे में नर्सरी व पॉली टनल के माध्यम से हम बदलते हुए मौसम के अनुसार नर्सरी उत्पादन व उसका प्रबंधन कर सकते हैं क्योंकि इन तकनीकों का प्रमुख कार्य यह है कि हम नियंत्रित वातावरण में नर्सरी उत्पादन व उसका प्रबंधन कर सकते हैं।
धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन
धान एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है, जो पूरे विश्व की आधी से ज्यादा आबादी को भोजन प्रदान करती है। चावल के उत्पादन में सर्वप्रथम चाईना के बाद भारत दूसरे नंबर पर आता है।
कृषि-खाद्य प्रणालियों में एएमआर को नियंत्रण में करने के लिए उचित कदम उठाने चाहिएं
रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एएमआर एक ऐसी 'मूक महामारी', है जो न केवल इंसान और मवेशियों के स्वास्थ्य बल्कि खाद्य सुरक्षा और विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। आज जिस तरह से वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र में एंटीबायोटिक्स दवाओं का बेतहाशा उपयोग हो रहा है, वो चिंता का विषय है। सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमैंट (सीएसई) लम्बे समय से रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बढ़ते खतरे को लेकर चेताता रहा है।
नाइट्रोजन स्थिर करने वाले बैक्टीरिया बढ़ाते हैं उत्पादन
एक नए अध्ययन के अनुसार, मिट्टी में रहने वाले और जड़ों में नाइट्रोजन को स्थिर करने में मदद करने वाले बैक्टीरिया कुछ पौधों की प्रजनन क्षमता को बढ़ा सकते हैं जिसमें फैबेसी परिवार से संबंधित एक फलीदार पौधे चामेक्रिस्टा लैटिस्टिला में इस तंत्र का अध्ययन किया गया है, जिसमें बीन्स और मटर शामिल हैं।
किसानों को नहीं मिलता सब्जियों का उचित मूल्य ..
भारतीय किसानों को फलों और सब्जियों के अंतिम विक्रय मूल्य का केवल एक तिहाई ही मिल रहा है, जबकि अधिकांश हिस्सा थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं द्वारा छीन लिया जाता है, यह बात खाद्य मुद्रास्फीति पर आरबीआई द्वारा प्रकाशित शोध पत्रों की श्रृंखला से पता चली है।
टमाटर की पूर्ति श्रृंखला को सुधारने की आवश्यकता
मध्य प्रदेश, जो टमाटर का प्रमुख उत्पादक राज्य है, की टमाटर आपूर्ति श्रृंखला पर किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 15 प्रतिशत टमाटर खेतों में ही नष्ट हो जाते हैं, जबकि 12 प्रतिशत टमाटर खुदरा स्तर पर नष्ट हो जाते हैं।
इलेक्ट्रिक कारें कैसे पैदा करेंगी डीएपी का संकट
फसलों की बुवाई के समय उपयोग होने वाले सबसे अहम उर्वरक, डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) के कच्चे माल फॉस्फोरिक एसिड का एक नया दावेदार खड़ा हो गया है। इससे डीएपी के लिए लगभग पूरी तरह आयात पर निर्भर भारत जैसे देशों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस नये दावेदार को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार सब्सिडी भी दे रही है। वह दावेदार है इलेक्ट्रिक वाहन यानी ईवी।
कृषि में सिंचाई प्रबंधन
सिंचाई के लिए पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता के आधार पर सिंचाई प्रबंधन की योजना बनाना कृषि कार्यों की सफलता के लिए आवश्यक है। सिंचाई प्रबंधन का उद्देश्य फसलों को आवश्यक मात्रा में पानी प्रदान करना है, ताकि उनकी वृद्धि, विकास और उत्पादन अधिकतम हो सके।
देहात-बीज से बाजार तक
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के अधिकांश लोग आज भी अपनी जीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। दूसरे शब्दों में हमारी अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि ही है। इन परस्थितियों में कृषक की भूमिका अत्याधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
ज्ञान विज्ञान के सफल लेखक डॉ. फकीर चंद शुक्ला
डॉ. फकीर चंद शुक्ला व्यवसायिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि बहुत अमीर प्राप्त भोजन विज्ञानी हैं। वह पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी से बतौर प्रोफैसर (भोजन विज्ञान) सेवा मुक्त हुए हैं।
प्याज की खेती से अच्छी आमदनी प्राप्त करने वाले सफल किसान-मनजीत सिंह
खेती से किसान अपनी तकदीर बदल सकते हैं और खुद को गरीबी से बाहर निकाल सकते हैं, बस सही समय पर सही तकनीक और तरीके से खेती करने की जरूरत है। पंजाब के मानसा जिले के अंतर्गत घरांगना गांव के किसान मनजीत सिंह ने भी इसी तरह से सफलता हासिल की है।
मूत्र के नमूनों में कीटनाशक अवशेष पाए जाने से स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ीं
अक्टूबर 2021 से अप्रैल 2023 के बीच एक व्यापक अध्ययन में तेलंगाना के किसानों पर कीटनाशक संपर्क के प्रभाव के बारे में चिंताजनक जानकारी सामने आई है। यह शोध भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), भारत सरकार के सहयोग से प्रायोजित किया गया था। इस गहन जांच में तीन जिलों-यादाद्री-भुवनगिरी, विकराबाद और संगारेड्डी के 15 गांवों को शामिल किया गया और लंबे समय से उपयोग किए जा रहे कीटनाशकों का स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभावों पर नया अध्ययन किया गया। यह किसानों को इन रसायनों के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देता है। इस अध्ययन का उद्देश्य किसानों और कृषि श्रमिकों में कीटनाशक संपर्क के स्तर का आकलन करना था, जो फसल संरक्षण उत्पादों के करीब रहने के कारण खतरनाक रसायनों के संपर्क में रहते हैं। विभिन्न संस्थानों के शोधकर्ताओं ने 493 प्रतिभागियों के साथ व्यापक क्षेत्र में कार्य किया। किसानों को दो समूहों में विभाजित किया गया: कीटनाशकों के संपर्क में आने वाले और नियंत्रण समूह जिनका कोई ज्ञात संपर्क नहीं था।
कम हो रही मिट्टी की जैव विविधता मिट्टी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक
एक नए शोध में पाया गया कि जमीन के अंदर रहने वाले जीवों में गिरावट आने का सबसे बड़ा कारण मिट्टी का प्रदूषण है। इस खोज ने वैज्ञानिकों को अचंभे में डाल दिया है, जिन्होंने इस बात के आसार जताए थे कि अंधाधुंध खेती और जलवायु परिवर्तन इस तरह की समस्याओं को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। शोधकर्ताओं ने कहा कि भूमि के ऊपर, भूमि उपयोग, जलवायु परिवर्तन और आक्रामक प्रजातियों का जैव विविधता पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। इसलिए हमने मान लिया था कि यह जमीन के नीचे भी ऐसा ही होगा।
डेयरी पशुओं में भ्रूण स्थानांतरण के लिए देसी तकनीक तैयार
वैक्सीन निर्माता इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स (आईआईएल) ने स्वदेशी इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) मीडिया 'षष्ठी' लांच किया है, जिसे इसकी मूल कंपनी - राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के सहयोग से विकसित किया गया है।
फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए माइक्रोफ्लूडिक सिस्टम तैयार
फसल की पैदावार बढ़ाने के प्रयासों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने मिट्टी जैसी स्थिति बनाने के लिए एक पोर्टेबल और सस्ता माइक्रोफ्लूडिक सिस्टम विकसित किया है। उन्होंने इस सिस्टम का परीक्षण भी किया है, जिसमें पता चला है कि पोषक तत्वों के प्रवाह को बेहतर करने से जड़ों के बढ़ने और नाइट्रोजन अवशोषण में सुधार हो सकता है।
भूमिगत पानी को पुनर्जीवित करने के लिए धान की फसल का बदलाव आवश्यक
एक अध्ययन में पाया गया है कि चावल की खेती वाले लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र के स्थान पर अन्य फसलें उगाने से उत्तर भारत में वर्ष 2000 से अब तक नष्ट हुए 60-100 घन किलोमीटर भूजल को पुनः प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
आलू से बनेगा एथेनॉल
केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान आलू के अपशिष्ट को इथेनॉल में बदलने के लिए एक पायलट प्लांट स्थापित करने की योजना बना रहा है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक देश भारत, फसल कटाई के बाद होने वाले भारी नुकसान का सामना करता है।
धान के भण्डारण के लिए कुछ आवश्यक सुझाव
भरपूर उपज प्राप्त करने के लिए किसान जी तोड़ मेहनत करता है। परंतु धान और अनाज के दुश्मन कीट आदि उसे उसकी मेहनत का लाभ नहीं लेने देते। इससे किसान का नुकसान तो होता ही है, यह नुकसान सिर्फ किसान का ही नहीं, बल्कि सारे राष्ट्र का है तथा उसका मुख्य कारण है, धान की उसके दुश्मनों से सुरक्षा न होना एवं उसका रखरखाव के लिए सही प्रबंध का न होना।
जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव
जलवायु परिवर्तन अप्रत्यक्ष रूप से भी कृषि को प्रभावित करता है जैसे खरपतवार को बढ़ाकर, फसलों और खरपतवार के बीच स्पर्द्धा को तीव्र करना, कीट-पतंगों तथा रोगजनकों की श्रेणी का विस्तार करना इत्यादि।
नैनो प्रौद्योगिकी का कृषि में महत्व
नैनो प्रौद्योगिकी विज्ञान और प्रौद्योगिकी की एक नई दिशा है, जिसकी आधुनिक कृषि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इसके माध्यम से उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है, परन्तु कृषि में इसका उपयोग अभी सीमित ही है। किसानों के लिए यदि यह प्रौद्योगिकी लाभप्रद हो सके तो यह कृषि की दशा और दिशा बदलने में महत्वपूर्ण कदम होगा। नैनो प्रौद्योगिकी द्वारा यदि रासायसिक खादों को तैयार किया जाये तो खाद की गुणवत्ता और उपयोगिता दोनों बढ़ जायेंगी, जिसके फलस्वरुप खेती के लिए कम मात्रा में खाद की आवश्यकता होगी।
उपभोक्ता मामलों में बीज उत्पादक बरते सावधानियां
बीज धरा का गहना है। कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में अन्य कारकों के साथ बीज मुख्य कारक है। अतः खाद्य समृद्धि के लिए बीज का उत्तम ही नहीं, सर्वोत्तम एवं चरित्रवान होना आवश्यक है। बीज कानूनों जैसे बीज अधिनियम-1966, बीज नियम-1968, बीज नियन्त्रण आदेश 1983 तथा अन्य, बीज गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ करने वाले बीज उत्पादक, बीज विक्रेता को कठोरत्तम दण्ड देता है, परन्तु बीज का निम्न गुणवत्ता के कारण हुई फसल क्षति पूर्ति करने का कोई प्रावधान नहीं है। लोक सभा में प्रस्तावति बीज विधेयक (Seed Bill 2019) में कृषक क्षतिपूर्ति का स्पष्ट प्रावधान किया गया है परन्तु नये बीज अधिनियम के अन्तर्गत उपजे क्षति पूर्ति के विवादों का निपटारा भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार ही होगा।
अनार में जड़गांठ सूत्रकृमि का प्रबंधन
सूत्रकृमि (निमेटोड) एक तरह का पतला धागानुमा कीट होता है। यह जमीन के अन्दर पाया जाता है। इसे सूक्ष्मदर्शी की सहायता द्वारा आसानी से देखा जा सकता है। इनका शरीर लंबा बेलनाकार तथा बिना खंडों वाला होता है। मादा सूत्रकृमि गोलाकार एवं नर सर्पिलाकार आकृति का होता है। इनका आकार 0.2 मि.मी. से 10 मि.मी. तक हो सकता है। सूत्रकृमि कई तरह के होते हैं और इनमें से प्रमुख जड़गांठ सूत्रकृमि है।
सतावर की आधुनिक वैज्ञानिक खेती
विभिन्न औषधीय पौधों में सतावर एक महत्वपूर्ण औषधीय पौध है जिसका उपयोग प्राचीन समय से ही पारम्परिक औषधि के रूप में किया जा रहा है।