1. दूध की मात्रा: मुर्रा भैंस भारत वर्ष के हरियाणा, पंजाब, दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश के भागों में बहुतायत में पाली जाती है। इसकी दुग्ध उत्पादन क्षमता एक ब्यांत में 3000 लीटर है। इस नस्ल की लगभग 3 प्रतिशत भैंसें तो 3500 लीटर से भी अधिक दूध देती हैं। संकर नस्ल की गाय 3500-7000 लीटर तक दूध दे देती है। देशी नस्ल की गाय 1500-2000 लीटर तक दूध देती है। भैंस के दूध में चिकनाई की मात्रा 7 प्रतिशत से अधिक होती है जिससे दूध का अधिक मूल्य मिलता है, जबकि गाय के दूध में चिकनाई की मात्रा 3-5 प्रतिशत तक ही होती है जिससे उसका भैंस के दूध के मुकाबले कुछ कम मूल्य मिलता है।
2. प्रजनन समय: यह देखा गया है कि भैंसें अधिकतर अगस्त से जनवरी महीने के बीच गर्भाधारण करती हैं तथा अगस्त से दिसम्बर की अवधि में ब्याती हैं जबकि गाय गर्मी के मौसम में गर्भ धारण करती है। गर्मी का भैंसों के प्रजनन काल पर विपरीत असर पड़ता है। वर्षा ऋतु के बाद जब इन्हें हरा चारा उचित मात्रा में मिलता है साथ ही वातावरण का तापक्रम भी कम होने लगता है तब ये प्रजनन में आती है।
3. व्यस्कता: भैंसें 2.5 से 3 साल की आयु में व्यस्क हो जाती हैं परन्तु यदि शुरू से ही कटियों का पालन-पोषण अच्छी तरह से हो तो 2 साल की उम्र में यह प्रजनन योग्य हो जाती है। संकर गाय 16-20 महीने की उम्र में व्यस्क होती है वहीं देशी गाय 2.5 से 3 साल की उम्र में प्रजनन योग्य हो जाती है।
ब्याने के बाद मदकाल में आने की अवधि: पशु आहार, उचित रखरखाव एवं सांड का संसर्ग मदकाल में आने की अवधि को प्रभावित करते हैं। भैंसें ब्याने के 130 से 150 दिन बाद मदकाल में आ जाती है परंतु आदर्श अवधि 90 दिन है। भैंसों में यह अवधि इसके ऋतुकालिक होने के कारण प्रभावित होती है। यदि भैंस वर्षा या ग्रीष्म ऋतु में ब्याती हैं तो मदकाल में आने की अवधि बढ़ जाती है जबकि जाड़ों में ब्याने वाली भैंस 80 से 100 दिन बाद ही मदकाल में आ जाती है। गायों में यह अवधि 40-60 दिन की होती है। परन्तु यह 60-90 दिन की भी हो सकती है।
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सब्जियों की जैविक खेती
सब्जियों की जैविक खेती हमारे देश में हरित क्रांति के अंतर्गत सिंचाई के संसाधनों के विकास, उन्नतशील किस्मों और रासायनिक उर्वरकों एवं कृषि रक्षा रसायनों के उपयोग से फसलों के उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई। लेकिन समय बीतने के साथ फसलों की उत्पादकता में स्थिरता या गिरावट आने लगी है। इसका प्रमुख कारण भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रास होना है।
किसानों के लिए पैसे बचाने का महत्व एवं बचत के आसान सुझाव
किसानों के लिए बचत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करती है। खेती एक जोखिम पूर्ण व्यवसाय है जिसमें मौसम, फसल की बीमारी और बाजार के उतार-चढ़ाव जैसी कई अनिश्चितताएं शामिल होती हैं।
उर्द व मूंग में एकीकृत रोग प्रबंधन
दलहनी फसलों में उर्द व मूंग का प्रमुख स्थान है। जायद में समय से बुवाई व सघन पद्धतियों को अपनाकर खेती करने से इन फसलों की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। जायद में पीला मौजेक रोग का प्रकोप भी कम होता है।
ढींगरी खुम्ब उत्पादन : एक लाभकारी व्यवसाय
खुम्बी एक पौष्टिक आहार है जिसमें प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन जैसे पोषक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। खुम्बी में वसा की मात्रा कम होने के कारण यह हृदय रोगियों तथा कार्बोहाईड्रेट की कम मात्रा होने के कारण मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा आहार है। खुम्बी एक प्रकार की फफूंद होती है। इसमें क्लोरोफिल नहीं होता और इसको सीधी धूप की भी जरूरत नहीं होती बल्कि इसे बारिश और धूप से बचाकर किसी मकान या झोंपड़ी की छत के नीचे उगाया जाता है जिसमें हवा का उचित आगमन हो।
वित्तीय साक्षरता को उत्साहित करने में सोशल मीडिया की भूमिका
आधुनिक डिजिटल प्रौद्योगिकी का पूरी तरह से प्रयोग करना एवं भविष्य में वित्तीय सुरक्षा को यकीनन बनाने के लिए, प्रत्येक के लिए वित्तीय साक्षरता आवश्यक है। यह यकीनन बनाने के लिए कि आपका वित्त आपके विरुद्ध काम करने की बजाये आपके लिए काम करती है, ज्ञान एवं कुशलता की एक टूलकिट्ट की जरूरत होती है।
मेथी की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
मेथी (Fenugreek) की खेती पूरे भारत में की जाती है। इसका सब्जी में केवल पत्तियों का प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही बीजों का प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता है।
जैविक खादों का प्रयोग बढ़ायें
भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए उपजाऊ शक्ति को बनाये रखना बहुत जरूरी है। वर्ष 2025 में 30 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन के लिए लगभग 45 मिलियन टन उर्वरकों की जरूरत होगी, लेकिन एक अन्दाज के अनुसार वर्ष 2025 में 35 मिलियन टन उर्वरकों का प्रयोग किया जायेगा।
गेंदे की वैज्ञानिक खेती से लाभ
गेंदा बहुत ही उपयोगी एवं आसानी से उगाया जाने वाला फूलों का पौधा है। यह मुख्य रूप से सजावटी फसल है। यह खुले फूल, माला एवं भू-दृश्य के लिए उगाया जाता है।
विनाशकारी खरपतवार गाजरघास की रोकथाम
अवांछित पौधे जो बिना बोये ही उग जाते हैं और लाभ की तुलना में ज्यादा हानिकारक होते हैं वो खरपतवार होते हैं। खरपतवार प्राचीन काल से ही मनुष्य के लिये समस्या बने हुये हैं, खेतों में उगने पर यह फसल की पैदावार व गुणवत्ता पर विपरीत असर डालते हैं।
खेती में बुलंदियों की ओर बढ़ने वाला युवक किसान - नितिन सिंह
उत्तर प्रदेश का एग्रीकल्चर सैक्टर काफी तेजी से ग्रो कर रहा है। इस सैक्टर को लेकर सबसे खास बात यह है कि देश के युवा भी इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। इसी क्रम में हम आपको यूपी के सीतापुर के रहने वाले एक ऐसे युवक की कहानी बताने जा रहे हैं, जो लाखों युवा किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं।