![नील हरित शैवाल एक जैविक खाद](https://cdn.magzter.com/1344336963/1707978075/articles/y5_OpvpaI1708084452025/1708084807785.jpg)
नील हरित शैवाल एक जीवाणु फायलम होता है, जो प्रकाश संश्लेषण से ऊर्जा उत्पादन करते हैं। यहां जीवाणु के नीले रंग के कारण इसका नाम सायनों (अर्थात नीला) से पड़ा है।
नील हरित काई वायुमंडलीय नाइट्रोजन यौगिकीकरण कर, धान की फसल को आंशिक मात्रा में की नाइट्रोजन पूर्ति करता है। यह जैविक खाद नत्रजनधारी रासायनिक उर्वरक का सस्ता व सुलभ विकल्प है जो धान की फसल को, न सिर्फ 25-30 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर की पूर्ति करता है, बल्कि उस धान के खेत में नील हरित काई के अवशेष से बने सेन्द्रीय खाद के द्वारा उसकी गुणवत्ता व उर्वरता कायम रखने में मददगार साबित होती है।
नील हरित काई के उपयोग से लाभ
1. नील हरित काई एक जैविक खाद है जिसे धान उत्पादक किसान अपने स्तर पर आसानी से तैयार कर सकते हैं।
2. नील हरित काई सामान्य रूप से धान की फसल को करीब 25 से 30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर नत्रजन की पूर्ति करता है।
3. यह काई उपचार के पश्चात प्रत्येक सीजन में अपने अवशेषों के द्वारा करीब 800 से 1200 किलोग्राम तक सेन्द्रीय खाद प्रति हैक्टेयर की पूर्ति करता है जिसकी वजह से उसे खेत के मिट्टी की गुणवत्ता और उपजाऊ क्षमता कायम रहती है।
4. नील हरित काई के द्वारा कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ स्त्रावित होता है जिससे बीजों का अंकुरण और फसलों में सामान रूप से वृद्धि होती है।
5. लगातार 3-4 वर्षों तक यदि धान के उसी खेत में नील हरित काई का उपयोग किया जाये तो आने वाले कडू सीजन तक पुनः उपचार करने की आवश्यकता नहीं होती साथ में इस काई के उपयोग का लाभ आगामी उन्ही फसल पर भी देखा गया है।
6. जैविक खाद के रूप में नील हरित काई के उपयोग के फलस्वरूप अतिरिक्त उपज मिलने से करीब 400 से 500 रु. प्रति हैक्टेयर तक शुद्ध आमदनी होती है।
धान के खेत में नील हरित काई का उपचार
1. ब्यासी करने के बाद अथवा रोपा लगाने के 6 से 10 दिन के भीतर ही नील हरित काई का उपचार किया जाना आवश्यक है। इस काई के उपचार के पहले ध्यान रहे, धान के खेत में 8 से 10 सैं.मी. से ज्यादा पानी न हो। खेत सूखने न पाये, इसके लिये खेत के मेड़ों में से चूहे के बिल आदि छेदों को तथा मुही को बंद कर दिया जाए।
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
![बदलते परिवेश में लाभदायक धान की सीधी बिजाई](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/YmRpwzSIb1718693879094/1718694013020.jpg)
बदलते परिवेश में लाभदायक धान की सीधी बिजाई
धान भारत की एक प्रमुख फसल है। हमारे देश में लगभग 360 लाख हैक्टेयेर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है जिसमें से लगभग 20 लाख हैक्टेयर क्षेत्र वर्षा आधारित है। असिंचित क्षेत्रों में समय पर वर्षा का पानी न मिलने से किसान लोग समय से कद्दू नहीं कर पाते हैं जिससे धान की रोपाई में विलम्ब हो जाती है।
![वर्ल्ड फूड प्राईज प्राप्त करने वाले संजय राजाराम](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/zP7nSR0Lm1718693735818/1718693855111.jpg)
वर्ल्ड फूड प्राईज प्राप्त करने वाले संजय राजाराम
संजय राजाराम एक भारतीय कृषि विज्ञानी हैं जिन्होंने गेहूं की अधिक उत्पादन देने वाली किस्में विकसित की हैं। गेहूं की इन किस्मों से 'कौज' एवं 'अटीला' प्रमुख हैं।
![अजोला से अच्छी आमदनी प्राप्त करने वाले प्रगतिशील किसान गजानंद अग्रवाल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/RO0J4l4P01718693619101/1718693733923.jpg)
अजोला से अच्छी आमदनी प्राप्त करने वाले प्रगतिशील किसान गजानंद अग्रवाल
देश में बहुत से किसान अपने ज्ञान और अनुभव के सहारे सूखी धरती पर तरक्की की फसल उगा रहे हैं। ऐसे किसान न केवल खुद खेती से कमाई कर रहे हैं, बल्कि अपनी मेहनत और नई तकनीकों का उपयोग करके दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन रहे हैं।
![ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करना आवश्यक](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/LyGmXK_-k1718691968793/1718692059199.jpg)
ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करना आवश्यक
ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने में अभी तक कृषि खाद्य प्रणाली को लक्ष्य नहीं बनाया गया है, जबकि नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने और ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए ऐसा करना जरूरी है। वैश्विक स्तर पर कृषि खाद्य प्रणाली 31 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। भारत के कुल उत्सर्जन में कृषि खाद्य प्रणाली का योगदान 34.1 प्रतिशत, ब्राजील में 84.9 प्रतिशत, चीन में 17 प्रतिशत, बांग्लादेश में 55.1 प्रतिशत और रूस में 21.4 प्रतिशत है।
![ग्लोबल डेयरी. मार्केट की मांग पूरी कर सकता है भारत](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/zxJWCbEhi1718691892034/1718691969668.jpg)
ग्लोबल डेयरी. मार्केट की मांग पूरी कर सकता है भारत
विश्व के डेयरी मार्केट में बेहतर ग्रोथ की संभावनाएं हैं क्योंकि आने वाले समय में पशु प्रोटीन के साथ दूध की मांग दुनिया भर में तेजी से बढ़ने का अनुमान है। इसकी वजह यूरोपियन यूनियन द्वारा लागू की जा रही ग्रीन डील है।
![कृषि-खाद्य प्रणाली में बदलाव के लिए इनोवेशन की जरुरत](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/D6dJjWV371718691779285/1718691889986.jpg)
कृषि-खाद्य प्रणाली में बदलाव के लिए इनोवेशन की जरुरत
वैश्विक कृषि-खाद्य प्रणाली इस समय कई चुनौतियों का सामना कर रही है। दुनिया की आबादी वर्ष 2050 तक 980 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इसे खिलाने के लिए खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है।
![कृषि में जलवायु परिवर्तन चुनौती से निपटने की जरूरत](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/jUMjNcdgD1718691688175/1718691777697.jpg)
कृषि में जलवायु परिवर्तन चुनौती से निपटने की जरूरत
भारतीय कृषि को किसानों के लिए फायदे का सौदा बनाने और जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए पुराने तौर-तरीकों से अलग हटकर सोचने की जरूरत है। अभी तक की नीतियों और योजनाओं से मिश्रित सफलता मिली है, जिनमें सुधार की आवश्यकता है। साथ ही जलवायु परिवर्तन, घटते भूजल स्तर और एग्रीकल्चर रिसर्च के लिए फंडिंग की कमी जैसी चुनौतियों से निपटने की आवशयकता है।
![कृषि अनुसंधान में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/SfflGP4bJ1718691596945/1718691685799.jpg)
कृषि अनुसंधान में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता
कृषि अनुसंधान में निवेश किए गए प्रत्येक रुपये पर लगभग 13.85 का रिटर्न मिलता है, जो खेती से जुड़ी अन्य सभी गतिविधियों से मिलने वाले रिटर्न से कहीं अधिक है।
![बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग के कारण खाद्य उत्पादन संकट में](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/ZBg2q8gDO1718691524635/1718691593996.jpg)
बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग के कारण खाद्य उत्पादन संकट में
अमेरिका की जलवायु विज्ञान का विश्लेषण और सम्बन्धित समाचारों की रिपोर्टिंग करने वाली संस्था क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा हाल ही में किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 तक वैश्विक तापमान अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया।
![गिर रहा पानी का स्तर चिंता का विषय...](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/oFpksfa6a1718691455813/1718691523130.jpg)
गिर रहा पानी का स्तर चिंता का विषय...
दुनिया भर में बढ़ता तापमान अपने साथ अनगिनत समस्याएं भी साथ ला रहा है, जिनकी जद से भारत भी बाहर नहीं है। ऐसी ही एक समस्या देश में गहराता जल संकट है जो जलवायु में आते बदलावों के साथ और गंभीर रूप ले रहा है।