खरीफ सीजन में बोई गई दलहनी फसलों जैसे मूंग, उड़द, लोबिया की फसल का इस महीने में पकने का समय होता है. यही वह समय होता है, जब तोरिया, अगेती सरसों और लाही की बोआई की जाती है.
रबी सीजन के लिए ली जाने वाली सब्जियों की फसल के लिए इस महीने नर्सरी तैयार करने का भी समय होता है. साथ ही कई तरह की सब्जियों की सीधी बोआई खेत में की जाती है. इस के अलावा यह बागबानी, पशुपालन, खुंब उत्पादन और चारा फसलों के लिए भी काफी खास होता है.
धान की फसल में पूरे सितंबर महीने में किस्मों के हिसाब से बालियां आती हैं. ऐसी दशा में फसल को खास देखभाल की जरूरत होती है. धान की फसल में 50 से 55 दिन की अवस्था में नाइट्रोजन यानी यूरिया की दूसरी व अंतिम टौप ड्रैसिंग बाली बनने की अवस्था में की जाती है.
धान की सुगंधित प्रजातियों में नाइट्रोजन की 15 किलोग्राम मात्रा व अन्य प्रजातियों में 30 किलोग्राम की मात्रा का टौप ड्रैसिंग करनी चाहिए.
इस समय यह ध्यान दें कि खेत में 2 से 3 सैंटीमीटर से अधिक पानी न हो और बालियां निकलने व फूल आते समय पर्याप्त नमी हो.
इस दौरान धान की फसल में जीवाणु झुलसा, भूरी चित्ती, फाल्स स्मट जैसे रोगों का प्रकोप दिखाई पड़ता है. साथ ही, फसल में तना छेदक, धान का पत्ती लपेटक, धान का भूरा फुदका का प्रकोप भी दिखाई पड़ता है. ऐसी दशा में अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक फसल सुरक्षा से संपर्क कर उन के द्वारा बताए गए उपाय जरूर करें.
जिन किसानों ने मक्का या ज्वार की खेती कर रखी है, अगर उन के क्षेत्र में बारिश अधिक हो रही है, तो उचित जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करें. मक्का और ज्वार में दाने बनने की अवस्था में उपयुक्त नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई अवश्य करें.
बाजरा की फसल में बोआई के 25 से 30 दिन बाद प्रति हेक्टेयर 87 से 108 किलोग्राम यूरिया की टौप ड्रैसिंग करें. बाजरा की फसल में अगर कीट का दुष्प्रभाव दिखाई पड़े या दाने की जगह भूरेकाले रंग की सींक के आकार की गांठें बन रही हों, जिन्हें सफेद स्क्लेरेशिया कहते हैं या पत्तियों का रंग पीला पड़ रहा हो, तो अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र पर संपर्क करें.
मूंग, उड़द, सोयाबीन, फूल और फली बनते समय नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई अवश्य करें.
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