दिल्ली में तुगलकाबाद का किला बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट बताती है कि अलाउद्दीन खिलजी के बाद दिल्ली की सल्तनत संभाली तुगलक वंश के पहले शासक गयासुद्दीन ने, जिसे पहले गाजी मलिक के नाम से जाना जाता था. उसे ऐसा किला बनाना था, जिसकी दीवारें भेदी न जा सकें. इस गरज के चलते राजधानी के दक्खिन में उसने एक नया किला तामीर कराना शुरू किया. इस दौरान दिल्ली के सभी मजदूरों को इसी काम में झोंक दिया गया. ठीक इसी समय निजामुद्दीन औलिया अपनी खानकाह में एक बावली बनवा रहे थे. मजदूर दिन में किले का काम करते और रात को औलिया की खानकाह पर. जब गयासुद्दीन को यह बात पता चली तो वह औलिया पर बड़ा बेजार हुआ. दोनों के बीच तनातनी काफी बढ़ गई. आगे की इस बात की इतिहास पुष्टि नहीं करता लेकिन कहते हैं कि इससे नाराज निजामुद्दीन औलिया ने तुगलकाबाद को लेकर कहा था, "या रहे उज्जड़, या बसें गुज्जर."
इतिहास के मुताबिक, इस बीच गयासुद्दीन को अपने लश्कर के साथ बंगाल जाना पड़ा. बंगाल फतेह करके वह लौटा तो दिल्ली के बाहर अपने स्वागत के लिए लगे शामियाने में दबकर मारा गया, और इस तरह उसका तुगलकाबाद बसाने का सपना भी खत्म हो गया. लेकिन जिस तुगलकाबाद को गयासुद्दीन नहीं बसा सका, वहां बाद के दौर में निजामुद्दीन औलिया की कथित बात को सच साबित करते हुए गुर्जर समुदाय के लोग आबाद हुए.
गयासुद्दीन के अलावा एक और कड़ी थी जो तुगलकाबाद को बंगाल से जोड़ती है. '90 के दशक में दिल्ली में बंगाल से बड़े पैमाने पर मजदूर आने शुरू हुए. उनको रिहाइश के लिए जगह चाहिए थी. शरण दी तुगलकाबाद ने. किले के आस-पास की जगह धीरे-धीरे मजदूरों की बस्ती में तब्दील हो गई. ज्यादातर बंगाली, कुछ बिहार, उत्तर प्रदेश और पहाड़ से आए हुए कामगार. ये सब लोग यहां किस्तों में बसे थे, लेकिन इन्हें एक साथ उजड़ना था. और उजड़ने का दिन मुकर्रर हुआ 30 अप्रैल, 2023.
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"