फैसला आए 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि झगड़े का एक और अध्याय सामने आ गया. आप सरकार ने सेवा सचिव आशीष मोरे के तबादले का आदेश जारी किया, लेकिन विभाग ने इसे अनदेखा कर दिया. इतना ही नहीं, उसने यह कहते हुए इस कदम को 'अवैध' तक करार दे डाला कि अदालत पूर्व में किसी अधिकारी का कार्यकाल पूरा होने से पहले उसके तबादले की समीक्षा के लिए सिविल सेवा बोर्ड स्थापित किए जाने का केंद्र/राज्य सरकारों को आदेश दे चुकी है. इसके बाद दिल्ली सरकार ने केंद्र की तरफ से दखल देने और अदालत की संभावित अवमानना करने का आरोप लगाते हुए फिर शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया. इस पर सीजेआइ ने कहा है कि वे इस मामले की सुनवाई के लिए एक बेंच का गठन करेंगे.
लेकिन इससे पहले ही केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी कर ट्रांसफर पोस्टिंग की सारी ताकत फिर से एलजी हवाले कर दी. अध्यादेश के अनुसार, तबादले-पोस्टिंग यानी सेवाओं से जुड़े मामले देखने के लिए नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी का गठन होगा. दिल्ली के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव (गृह) इसके सदस्य होंगे. मुख्यमंत्री अथॉरिटी के चेयरमैन होंगे. यह अथॉरिटी ही अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर फैसला कर अपनी सिफारिश एलजी को भेजेगी. अगर एलजी और अथॉरिटी के बीच मतभिन्नता होगी तो एलजी का फैसला ही अंतिम होगा. यानी दिल्ली में एलजी की ही चलेगी.
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परदेस में परचम
भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.
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सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
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लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.