काफी देर अपने मुंह मियां मिट्ठ बनने के बाद फिल्मकार विधु विनोद चोपड़ा ने कहा, "मैं ऐसा घमंडी अहमक हूं." यह इतना ईमानदार खुलासा था कि दर्शकों में बैठे नसीरुद्दीन शाह, कमल हासन, शबाना आजमी सरीखे कई दिग्गज भी उनसे सहमत होते. वे चोपड़ा की फिल्मों का 45 साला जश्न मनाने के लिए मुंबई के पीवीआर मल्टीप्लेक्स में इकट्ठा हुए थे. उनके शानदार करियर के दौरान प्रोड्यूस उनकी फिल्में हफ्ते भर दिखाई गईं. वे हिंदी सिनेमा पर गहरा असर डालने वाली फिल्में थीं - परिंदा (1989), 1942 ए लव स्टोरी (1994), मुन्ना भाई एमबीबीएस (2003), लगे रहो मुन्ना भाई (2006), 3 ईडियट्स (2009) और पीके (2014). मगर चोपड़ा यादों की गलियों में घूमकर ही संतुष्ट नहीं हैं. 71 साल की उम्र में भी वे वही कर रहे हैं जो वे बेहतरीन जानते हैं - कहानी कहना और अपने ढंग से कहना.
उनकी ताजातरीन फिल्म है ट्वेल्थ फेल, जो आइपीएस अफसर मनोज कुमार शर्मा की सच्ची कहानी है, जिन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में कामयाब होने के लिए अनगिनत बाधाओं से लड़ाई लड़ी. यह ड्रामा फिल्म अनुराग पाठक की इसी नाम की किताब का रूपांतरण है, जो सारे भावनात्मक तार छेड़ देती है. विक्रांत मैसी की मर्मस्पर्शी अदाकारी से सजा यह ऐसा प्रोजेक्ट है जिसमें चोपड़ा ने काफी कुछ खुद को झोंक दिया और अपने कुछ अनुभवों को फिल्म में पिरोया. वे कहते 44 हैं, "जब मैं मुंबई आया, मनोज की तरह मेरा भी सामान चोरी चला गया. जिंदा रहने की जद्दोजहद थी, पर मैंने कड़ी मेहनत और लगन पर भरोसा किया." वे यह भी कहते हैं, "मेरी पत्नी मुझसे कहती रहती हैं, 'कोई नहीं सुन रहा तेरा भाषण'. इससे मैं रुक नहीं जाता. मैं बस फिर शुरू करता हूं, उसी तरह जैसे मनोज करता है." अपने मूल विश्वासों के प्रति ईमानदार के रहना चोपड़ा के लिए अहम है. वे कहते हैं, "मनोज को ब्लडी ईडियट कहा जाता है. मैं भी वही ब्लडी ईडियट हूं." फिर हैरानी क्या कि फिल्म देखने के बाद पुणे के फिल्म और टेलीविजन संस्थान में चोपड़ा के बैचमैट रहे शाह ने मैसेज भेजकर कहा कि फिल्मकार ने आखिर निर्देशन सीख ही लिया. यह चोपड़ा के लिए पर्याप्त प्रमाणपत्र है.
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सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"