देहरादून के अंतरा सीनियर लिविंग थिएटर में उत्साह का माहौल है. 30 लोगों के बैठने की व्यवस्था वाली यह जगह लोगों से खचाखच भरी हुई है और कर्मचारी हड़बड़ी में और कुर्सियां लगा रहे हैं. यहां के रहने वाले 89 बरस के अनिल सूद और 83 बरस की सीमा सूद खास तौर पर रोमांचित हैं, क्योंकि उन्होंने मशहूर अभिनेता की 100वीं सालगिरह मनाने के लिए साँग सीक्वेंस –'देव आनंद की जिंदगी के 60 साल 60 मिनट में ' – तैयार किया है. ईएमआइ/एचएमवी (अब सारेगामा) के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल याद करते हैं कि किस तरह "एचएमवी ने कई साल देव आनंद की फिल्मों से पैसा बनाया... देव के प्रोडक्शन हाउस नवकेतन को सबसे ज्यादा रॉयल्टी एचएमवी से मिलती थी." ज्यों ही उनकी फिल्मों के गाने दे तना शुरू होते हैं, वहां मौजूद तमाम लोग भी उसमें शरीक हो जाते हैं, कुछ साथ-साथ गा रहे हैं, तो कई दूसरे चीअर और हूट कर रहे हैं.
सूद दंपती गुरुग्राम का अपना पांच कमरों का शानदार मकान छोड़कर करीब दो साल पहले अंतरा आ गए. अनिल को हर्पीज के संक्रमण ने पकड़ लिया, और 80 वर्ष से ऊपर के इस दंपती के लिए सेहत और घर दोनों संभालना मुश्किल हो गया. अनिल कहते हैं, “अंतरा स्वर्ग नहीं है, स्वर्ग सरीखा है. यह चार बटन का जिंदगीनामा है; बटन दबाओ और काम हो जाता है."
ये सोने से दमकते बूढ़े हैं, आप चाहें तो इन्हें युवा बुजुर्ग भी कह सकते हैं. ये आजादी से जीने, अपने जैसों के साथ रहने, शरीर और दिमाग से सक्रिय रहने, अकेलेपन से लड़ने और रोजमर्रा के चूल्हा-चौके में फंसे बिना स्वास्थ्य सेवा के करीब रहने की अदम्य इच्छा से प्रेरित हैं. बेशक, उनकी माली हालत ऐसा विकल्प चुनने में मददगार हुई. कोविड- 19 महामारी ने उन्हें एहसास कराया कि जिंदगी छोटी है और उसका कोई भरोसा नहीं और बाकी बचे सालों का भरपूर मजा लो. इसलिए सुविधा- संपन्न माहौल में सामुदायिक रहन-सहन सूद दंपती जैसे अनेक बुजुर्गों के लिए एक विकल्प बन गया है.
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"