केंद्र की गर्मियों में आम चुनाव से पहले ऑपरेशन शुरू करने की मंशा शायद कुछ ज्यादा ही महत्वाकांक्षी थी, इसीलिए 21 जनवरी को रायपुर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई बैठक में राज्य में माओवाद के खात्मे के लिए तीन साल का लक्ष्य रखा गया. बैठक में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, डीजीपी और सीआरपीएफ डीजी उपस्थित थे. लेकिन मौजूदा मुठभेड़ों, गिरफ्तारियों और आत्मसमर्पणों को देखा जाए तो इसमें संदेह नहीं कि माओवाद का वित्तपोषण करने वालों और उनको शह देने वाले पूरे तंत्र को नष्ट करने में लंबा वक्त लग सकता है. गृह मंत्रालय ने यह भी कहा है कि वह रकम के आवंटन और उसके इस्तेमाल में लचीला रुख अपनाएगा.
नए ऑपरेशन को सूर्य शक्ति नाम दिया गया है. शायद यह नाम तकरीबन 4,000 वर्ग किलोमीटर के घने जंगल के इलाके अबूझमाड़ के अंधियारे में रोशनी पहुंचाने के प्रतीक के तौर पर रखा गया है, जिसे माओवादियों की आखिरी पनाहगाह माना जाता है. यहां के 237 गांवों में तकरीबन 35,000 आबादी हैं, जिनमें ज्यादातर आदिवासी हैं, जहां सरकार लगभग पूरी तरह गैर-मौजूद है. स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ), जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के पांच दिवसीय (12-16 जनवरी) साझा अभियान में कई हथियार कारखाने नष्ट किए गए और एक बैरल ग्रेनेड लांचर, दो एयर राइफलें, एक 12-बोर बंदूक, तीन इंसास मैगजीन, एक दूरबीन, दो जनरेटर, नौ बेंच क्लैंपिंग, ड्रिलिंग और पंचिंग मशीनें तथा माओवादी वर्दी व साहित्य बरामद किया गया. 16 जनवरी को कांकेर जिले में एक मुठभेड़ के बाद चार संदिग्ध माओवादियों-आयतु नुरेटी, सुरेश नुरेटी, बुधुराम पद्दा और मनोज हिचामी को गिरफ्तार किया गया था. उसी दिन बस्तर जिले के मंगनार जंगलों में एक अन्य डिप्टी कमांडर स्तर का माओवादी रतन कश्यप उर्फ सलाम एक अलग मुठभेड़ में मारा गया.
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परदेस में परचम
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सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
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लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.