'रेलवे के निजीकरण का सवाल ही नहीं'
India Today Hindi|March 20, 2024
राष्ट्रपति भवन से कुछ कदम की दूरी पर खड़ा है रेल भवन. तीसरी मंजिल पर स्थित एक साफ-सुथरा कमरा. अपने इलाके में एक्सप्रेस गाड़ी का ठहराव चाहने वाले सांसदों, और लंबी बातचीत के तलबगार पत्रकारों से रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव यहीं मिलते हैं.
सौरभ द्विवेदी, निखिल धनराज वाठ
'रेलवे के निजीकरण का सवाल ही नहीं'

उनके पीछे प्रधानमंत्री मोदी की एक बड़ी सी तस्वीर लगी है. मंत्री लगातार उनका जिक्र भी करते हैं, लेकिन अपनी बात की भूमिका तैयार करते हैं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दिए एक सबक से. 2003-04 का दौर था. प्रधानमंत्री कार्यालय में उप सचिव और फिर वाजपेयी के निजी सचिव रहते हुए अश्विनी, वाजपेयी से ढेर सारे सवाल पूछा करते थे. एक सवाल बार-बार आता-समाज और सरकार के बीच संबंध कैसे होने चाहिए? मितभाषी वाजपेयी सिर्फ इतना कहते, "जाओ नॉर्डिक देशों पर लिखी किताबें पढ़ो."

कई किताबें पढ़ लेने के बाद अश्विनी अपना सवाल लेकर फिर 'बापजी' के सामने थे. इस बार वाजपेयी ने जवाब दिया. बोले, "समाज और सरकार का लक्ष्य एक ही है - एक बेहतर भविष्य. लेकिन हमारे यहां इन दोनों के बीच जिस भाषा में बात होती है, उसमें समस्या है. सरकार का जिक्र एक विलेन की तरह होता है, जिससे अपना हक छीनकर ही लिया जा सकता है. और सरकार समाज के लिए काम करते हुए उपकार की भाषा का इस्तेमाल कर डालती है. क्या यह बेहतर नहीं होगा कि समाज और सरकार एक ही टीम में हों. सरकार समझे कि समाज क्या चाहता है, उसके अनुरूप नीतियां बनाती चले और समाज भी इस बात को स्वीकार करे कि सरकार दुश्मन नहीं है. जब सरकार और समाज के बीच समरसता उपजेगी, तभी आम लोगों के जीवन में बदलाव आ पाएगा."

आइआइटी कानपुर, सिविल सेवा, दुनिया के नामी बिजनेस स्कूल और फिर मल्टीनेशनल कंपनियों में उच्च पदों पर रह चुके अश्विनी को वाजपेयी की यह नसीहत बहुत आगे तक ले आई है. वे मोदी सरकार में तीन-तीन मंत्रालय संभाल रहे हैं, जिनमें से एक रेल भी है, जो हर रोज 2 करोड़ 40 लाख लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचाती है. फिर प्रधानमंत्री खुद हर वंदे भारत को हरी झंडी दिखाते हैं, तो प्रदर्शन का दबाव दोतरफा है. समाज और सरकार, दोनों ने जो लक्ष्य तय किए हैं, उन्हें पूरा करना अश्विनी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है. अश्विनी सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी हैं, जिनसे जनता की निजता को लेकर सरकारी नीतियों पर प्रश्न तो पूछे ही जाते हैं, साथ में यह सवाल भी नत्थी होता है कि क्या उनकी भी पेगासस से जासूसी हुई थी.

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