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झारखंड भाजपा के भीतरखाने सब कुछ सामान्य नहीं लग रहा. बीच चुनाव में हजारीबाग के सांसद और पूर्व केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा, धनबाद विधायक राज सिन्हा समेत कुल पांच मंडल प्रमुखों को नोटिस थमा दिया गया. आरोप लगाया गया कि ये लोग पूरे चुनाव के दौरान निष्क्रिय रहे. यही नहीं, पार्टी के खिलाफ जाकर काम किया. इसी दौरान 19 मई को पार्टी प्रवक्ता कुणाल षाडंगी ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि उन्हें और उनके समर्थकों को लगातार अपमानित किया जा रहा है. इस्तीफा भी उस दिन दिया गया, जिस दिन पीएम नरेंद्र मोदी जमशेदपुर में चुनावी रैली को संबोधित कर लौटे थे.
सवाल है कि यह बुलबुला आखिर कब से बन रहा था और बीच चुनाव में ही क्यों फूटने लगा. दरअसल, जयंत को इस बार भी टिकट मिलने की उम्मीद थी. हजारीबाग के एक भाजपा नेता की मानें तो उन्होंने अपने ऑफिस का सौंदर्यीकरण करा लिया था. स्टाफ की संख्या बढ़ा दी गई थी. पर जैसे-जैसे समय बीता, उन्हें बोध हो गया टिकट न मिलने का. 2 मार्च को दोपहर 2.39 बजे उन्होंने जे.पी. नड्डा को ट्वीट कर जानकारी दी कि अब वे पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर काम करना चाहते हैं. उन्हें चुनावी कार्यों से मुक्त रखा जाए. पार्टी ने हजारीबाग के विधायक मनीष जायसवाल को टिकट दे दिया. इस पर जयंत के पिता और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने मनीष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने साफ कहा कि वे देश को मोदी से और हजारीबाग को मनीष से मुक्ति दिलाने के लिए ही आए हैं. जयंत के बेटे, पेशे से मॉडल आशिर सिन्हा ने तो मल्लिकार्जुन खड़गे की सभा में कांग्रेस का पट्टा पहनकर हिस्सा लिया और साफ कहा कि वे कांग्रेस प्रत्याशी जे. पी. भाई पटेल को समर्थन देने आए हैं.
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