जोअंडरग्रेजुएट छात्र बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (बीबीए) की डिग्री हासिल करना चाहते हैं, उनके लिए दिल्ली विश्वविद्यालय का शहीद सुखदेव कॉलेज ऑफ बिजनेस स्टडीज (एसएससीबीएस) व्यापक और अप टू डेट पाठ्यक्रम की पेशकश करता है. इस पाठ्यक्रम में मार्केटिंग, वित्त, मानव संसाधन और परिचालन जैसे बिजनेस विषयों के अलावा डेटा एनालिटिक्स, डिजिटल मार्केटिंग और आंत्रप्रेन्योरशिप के विषय भी शामिल होते हैं. एसएससीबीएस बिजनेस मैनेजमेंट की शिक्षा के प्रति अनूठे नजरिए के लिए जाना जाता है और इसका पाठ्यक्रम सैद्धांतिक ज्ञान और प्रैक्टिकल प्रयोगों के मेल के आधार पर तैयार किया गया है. प्राइवेट इक्विटी, हेज फंड और एडवांस डेरिवेटिव जैसे पाठ्यक्रम छात्रों को आज के रोजगार बाजार में सबसे ज्यादा मांग वाले कौशल से गढ़ते हैं. कारोबारी माहौल की असली दुनिया की समझ के लिए व्यावहारिक अनुभव महत्वपूर्ण होता है. कॉर्पोरेट साझेदारी का इसका शानदार नेटवर्क छात्रों को प्रमुख एमएनसी में इंटर्नशिप के अवसर मुहैया कराता है और उन्हें पेशेवर व्यवस्था में कक्षा में पढ़ी गई जानकारी के प्रयोग का अवसर देता है. संवाद सत्रों, शानदार जॉब प्लेसमेंट के आंकड़ों और सक्रिय एलुमनाइ नेटवर्क से मौजूदा छात्रों को मेंटरशिप और जॉब प्लेसमेंट में मदद मिलती है. इस चहुंमुखी शिक्षा प्रणाली में एक और बात एक्स्ट्रा करिकुलर गतिविधियों की हैं जो छात्रों में नेतृत्व कौशल और विकास को प्रोत्साहन देती हैं. छात्रों की ओर से चलाई जाने वाली कई समितियां जैसे आंत्रप्रेन्योरशिप सेल, इंटरनेशनल फाइनेंस स्टुडेंट एसोसिएशन और 180 डिग्री कंसल्टिंग इवेंट्स, वर्कशॉप और प्रतिस्पर्धाओं का आयोजन करती हैं जिससे कि छात्रों को अपना मुख्य कौशल विकसित करने और साथियों तथा प्रोफेशनल्स के साथ नेटवर्क बढ़ाने का अवसर मिले.
यह दूसरों से अलग क्यों है
इसका एनएएसी सीजीपीए स्कोर 4 में से 3.50 है
कॉलेज के जरिए प्लेसमेंट का विकल्प चुनने वाले 95 प्रतिशत छात्रों को नौकरियां मिलीं
छात्रों को 11.27 लाख रुपए के औसत वार्षिक वेतन (देश में) की पेशकश की गई जो बीबीए कॉलेजों में सबसे अधिक है
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ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"