दरअसल 7 मई को, जिस दिन लोकसभा 'के तीसरे चरण का मतदान खत्म हुआ चुनाव था, मायावती ने आकाश को पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक और उनके उत्तराधिकारी की दोहरी जिम्मेदारियों से उनकी 'परिपक्वता की कमी' के कारण हटा दिया था. आकाश की यह पदावनति 28 अप्रैल को सीतापुर में एक चुनावी भाषण के बाद हुई जिसमें उन्होंने भाजपा सरकार को "आतंकवादियों की सरकार" कहा था. उसके बाद उनके और 39 अन्य के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई थी.
लोकसभा चुनाव के 4 जून को आए नतीजे के बाद से लखनऊ में बसपा कार्यालय में सन्नाटा था क्योंकि पार्टी ने पिछले चुनाव में जीती सभी दस सीटें इस बार गवां दीं. इस चुनाव में बसपा ने एक भी सीट नहीं जीती और इसका वोट शेयर भी 2019 के 19.4 फीसद से घटकर 9.3 फीसद रह गया. लोकसभा चुनाव में बसपा के अब तक के इस सबसे खराब प्रदर्शन के कुछ हफ्ते बाद मायावती ने 23 जून की बैठक में आकाश को अपने एकमात्र राजनीतिक उत्तराधिकारी और पार्टी के नेशनल कोआर्डिनेटर के रूप में बहाल कर दिया, साथ ही नेताओं से 'उन्हें पहले से अधिक सम्मान देने का आग्रह किया. उन्होंने उम्मीद जताई कि आकाश इस बार 'परिपक्वता' के साथ जिम्मेदारियों को संभालेंगे. मायावती ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि वे हमारी पार्टी और आंदोलन के हित में हर स्तर पर एक परिपक्व नेता के रूप में उभरेंगे."
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"