रिटर्न गिफ्ट या तुष्टीकरण की राजनीति कुछ भी कह लीजिए. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो प्रमुख सहयोगी दलों की अगुआई वाले राज्यों-आंध्र प्रदेश और बिहार पर अच्छे-खासे वित्तीय आवंटनों की बौछार कर दी. मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार ने अचानक मिली इन सौगातों का स्वागत किया तो विपक्ष शासित राज्यों ने यह कहकर इसकी आलोचना की कि यह भाजपा की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एडीए) को मिले उनके समर्थन के बदले में दिया गया पुरस्कार है.
हाल के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के पाले में लौटे नायडू और नीतीश ने अपने राज्यों के लिए प्राथमिकतापूर्ण व्यवहार की मांग करने से कभी संकोच नहीं किया. मसलन, प्राथमिकता के आधार पर केंद्रीय अनुदान पाने की खातिर उन्होंने विशेष राज्य के दर्जे के लिए बार-बार दबाव डाला. चुनाव में मजबूत प्रदर्शन करने वाली नायडू की अगुआई वाली तेलुगु देशम पार्टी 16 सीटें और नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) ने 12 सीटें जीतीं, इससे उन्हें सौदेबाजी के और ज्यादा मौके मिल गए.
आंध्र की सत्ता में भी धमाके के साथ लौटे नायडू राजधानी शहर अमरावती की अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना को जिलाने के लिए केंद्रीय धन की मांग करते रहे थे. राज्य का बंटवारा होने के फौरन बाद नायडू पिछले कार्यकाल (2014-19) में सत्ता में आए थे. उस वक्त साझा राजधानी हैदराबाद भौगोलिक रूप से तेलंगाना में मिला दी गई थी. तब नायडू ने अमरावती को आंध्र प्रदेश का ग्रीनफील्ड राजधानी शहर बनाने की परिकल्पना की थी. पर 2019 में वाइ.एस. जगन मोहन रेड्डी के सत्ता में आने के बाद परियोजना उपेक्षा का शिकार हो गई.
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सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"