घने जंगल की अलसाई सुबह. कम सुनी आवाजें और करीबन अनदेखे नजारे, बंदरों हुए का एक जोड़ा चीखते हांफने लगा है. नतीजतन, सांभरों का एक झुंड चिहुंक कर अपनी जगह इतनी फुर्ती से छोड़ता है, जैसे वे यहां कभी थे ही नहीं. लंगूरों ने घात लगाए बैठे बाघ को देखते ही अपनी भाषा में 'भागते रहो' की मुनादी पीट दी. "अगर आपको वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी करनी हो तो एक चीज सीखनी होगी, इंतजार करना... वह भी बहुत ज्यादा इंतजार..." कैमरे के पीछे फुसफुसाती हुई यह नसीहत अपने इस यूट्यूब वीडियो में दे रही हैं आरजू खुराना. कभी किराए के कैमरे से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी की शुरुआत करने वालीं 30 वर्षीया आरजू खुराना के यूट्यूब चैनल पर जंगलों से जुड़े करीबन पांच सौ वीडियो हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ ग्रेजुएट आरजू गुजरे एक दशक में वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का जाना-पहचाना नाम बन चुकी हैं. उनकी खींची तस्वीरें देश और देश के बाहर भी खूब सराही गई हैं. जंगल और उससे अपने नाते पर आरज़ू कहती हैं, "मुझे अच्छी तरह याद है जब कई साल पहले धुंध, कीचड़ और ठंड में कैमरा लेकर कई घंटे इंतजार करने के बाद भी कोई मन की तस्वीर नहीं मिली थी, उस दौरान दिमाग का एक हिस्सा यह कह रहा था कि ये मेरे बस की बात नहीं, घर वापस चलना चाहिए. लेकिन मैंने आखिरी कुछ मिनट और इंतजार करने का फैसला किया और फिर मुझे जो तस्वीर मिली, उसने सारी कहानी बदल दी."
अपने पहले कैमरे से लेकर दुनिया भर की प्रदर्शनियों और पत्रिकाओं में छपने तक, इंतजार के और भी सफे आरजू से बातचीत में खुलते हैं. वे बताती हैं कि "ज्यादातर जंगलों के कोर एरिया में मोबाइल नेटवर्क बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे में अपनी इकलौती बेटी को पापा-मम्मी किस भरोसे पर जंगल जाने दे सकते थे! अब सोचती हूं तो उनका पॉइंट भी लॉजिकल लगता है."
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"