सामान्यतः सभी लग्नों में द्वितीय भावस्थ गुरु-चाण्डाल योग जातक के वैवाहिक सुख में कमी करता है। उसे पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ता है। शिक्षण, धर्मगुरु, वक्ता, ज्योतिष, राजनीति आदि क्षेत्रों वाले जातक अधिक सफल और धन एवं यश कमाते देखे गए हैं।
राहु की विभिन्न ग्रहों के साथ युति से बनने वाले योगों में गुरु-चाण्डाल योग सर्वाधिक प्रचलित माना जा सकता है। सामान्यत: इसे गुरु के साथ राहु की युति के रूप में ही देखा जाता है, परन्तु गुरु की केतु के साथ युति भी गुरु-चाण्डाल योग का निर्माण करती है। सामान्य धारणा के अनुसार इस योग से गुरु के शुभ फलों की हानि होती है और जातक नास्तिक, अनैतिक आचरण करने वाला, धोखेबाज, व्यभिचारी, कुसंगति वाला, नीच कर्मों से आजीविका प्राप्त करने वाला इत्यादि फल कहे जाते हैं। वास्तव में गुरु-चाण्डाल योग का यह में सामान्यीकरण इसको अत्यन्त सीमित करने वाला ही कहा जाएगा, क्योंकि गुरु-चाण्डाल योग का प्रभाव क्षेत्र इतना विस्तृत है कि इस पर एक पृथक् पुस्तक की रचना की जा सकती है।
शास्त्रीय पृष्ठभूमि
सर्वार्थचिन्तामणि में गुरु-चाण्डाल योग को केवल 'चाण्डाल योग' कहते हुए इसकी परिभाषा निम्नानुसार की गई है :
जीवे सकेतौ यदि वा सराहौ चाण्डालता पापनिरीक्षिते चेत् ।
सर्वार्थचिन्तामणि (9/39)
गुरु यदि केतु अथवा राहु के साथ स्थित हो और पापग्रह से द्रष्ट हो, तो जातक में चाण्डालता होती है।
जीवे राहुयुतेऽथवा शिखि पापेक्षिते नीचकृत्।
(जातकपारिजात 6/6)
गुरु राहु अथवा केतु से युत हो और पापग्रहों से द्रष्ट हो, तो जातक नीचकर्म करने वाला होता है।
शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार निम्नलिखित योग गुरुचाण्डाल स्थितियों में निर्मित होता है:
1. गुरु राहु अथवा केतु के साथ युत हो और
2. गुरु की उक्त युति पर पापग्रह की दृष्टि हो।
आधुनिक मत
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।