आज से पहले व्यावसायिक वास्तु ( ऑफिस और कॉरपेट) का कल्चर इतना अधिक नहीं था, जितना की आज है, क्योंकि इन्सान की आवश्यकताएँ समय के अनुसार बदलती हैं और आज के समय की माँग उद्योग-व्यापार है। ऐसे में पहले की तुलना में निर्माण कार्यों में वर्तमान में तेजी से वृद्धि हुई है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि पहले के समय में व्यावसायिक वास्तु नहीं था। व्यावसायिक वास्तु तो था, तभी तो शेरमुखी और गौमुखी प्लॉट (भूमि) का कॉन्सेप्ट वास्तु में लागू हुआ। ऐसे में हमारे पुरातन वास्तुशास्त्र में जिन सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है, उसको कैसे हम अपने वर्तमान और आधुनिक निर्माण कार्यों में लगा सकते हैं?
व्यावसायिक वास्तु में आगे बढ़ने से पहले हमें इस बात की पुष्टि कर लेनी चाहिए, कि आप जिस भूमि अथवा जमीन में उद्योग स्थापित करना चाहते हैं, उसका मुख (फेसिंग) किस दिशा की ओर होना चाहिए? वास्तुशास्त्र में किस तरह के लिए किस प्रकार का निर्माण होता है?
व्यावसायिक वास्तु के अन्दर यदि आप निर्माण पर विचार कर रहे हैं, तो वास्तुशास्त्र इसके लिए अलग-अलग व्यापार के लिए अलग-अलग दिशाओं वाले प्रतिष्ठान का निर्माण करने की सलाह देता है। ऐसे में यदि आप सरकारी संस्थान अथवा गवर्नमेंट कॉन्ट्रैक्ट में हों अथवा आप शैक्षणिक संस्थान, वकील, राजनीतिक कार्यालय, मनोरंजन और मीडिया से सम्बन्धित बिजनेस में हैं, तो ऐसे में पूर्वाभिमुख व्यावसायिक भवन आपके लिए लाभकर होंगे।
यदि आप चिकित्सक अथवा सर्जन हैं, फार्मा इण्डस्ट्री, शल्य चिकित्सा, फार्मास्यूटिकल, सौर ऊर्जा, बॉयलर, भट्टी, विद्युत् उपकरण, गल्ले की दूकान, परचून की दूकान, कॉर्पोरेट यूनिट जैसे उद्योगों से सम्बन्धित कार्य करते हैं, तो ऐसे में आपको वास्तु अनुसार दक्षिणमुखी कार्यालय आपके लिए बेहतर होते हैं।
यदि आप जिम, बिल्डर, डवलपर्स, परिवहन, स्नेहक, पानी, दूध, पेट्रोलपम्प, आइसक्रीम, ऑटोमोबाइल, तेल अथवा गैस का व्यापार करते हैं, या फिर कर्मचारी चयन से सम्बन्धित व्यापार अथवा काम करते हैं, तो आपको पश्चिममुखी ऑफिस अच्छे परिणाम देने वाले होंगे। इसके अतिरिक्त यदि आपका ऐसे व्यापार से सम्बन्ध हैं, जैसे फैशन, सीए, डिजाइनर, कंसलटेंट, हॉस्पिटल, क्लीनिक, शिक्षण संस्थान, वित्तीय संस्थान, तो इसके लिए उत्तरमुखी ऑफिस सर्वाधिक अच्छा होता है।
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।