श्रीकृष्ण की सेना भी बहुत बड़ी थी। जब दोनों सहायतार्थ गए, तो श्रीकृष्ण ने दोनों के समक्ष अपना मन्तव्य रखते हुए कहा कि मेरे लिए तुम दोनों समान हो, अतः मैं दोनों की सहायता करूँगा, पर एक पक्ष के लिए मेरी सम्पूर्ण नारायणी सेना होगी और दूसरे पक्ष के लिए मैं स्वयं। साथ ही यह भी शर्त है कि मैं युद्ध में शस्त्र ग्रहण नहीं करूँगा। अब तुम्हें जो अच्छा लगे, चुन लो।
सर्वप्रथम दुर्योधन की जो इच्छा हो, वह माँगे। दुर्योधन अति भौतिकवादी था, मन्दबुद्धि वाला था, सेना पर ही भरोसा करने वाला था, अतः उसने श्रीकृष्ण की नारायणी सेना को ही चुना। दूसरी ओर अर्जुन भक्त तथा भगवान् के रहस्य को जानने वाला था। वह अच्छी तरह से जानता था कि श्रीकृष्ण स्वयं पूर्णावतार हैं, अलौकिक शक्ति वाले हैं। इनके सामने सेना क्या देवसेना भी तुच्छ है, अतः इन्हें ग्रहण करने में ही इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएँगे। इसलिए उसने भगवान् श्रीकृष्ण को चुनने में ही स्वयं का कल्याण समझा।
दुर्योधन ने भयंकर भूल की थी। उसका सम्पूर्ण जीवन भूलों से भरा हुआ था। वह जड़वाद का पुजारी था। अनीति के पथ पर चलकर उसने स्वयं का जीवन कलुषित कर लिया था। वह परम पिता परमात्मा की उपेक्षा कर संसारी शक्तियों के भौतिक बल पर जीवन में विजय पाना चाहता था। यह उसकी भूल थी। बाद में अकेले श्रीकृष्ण अपनी समस्त सेना से अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुए।
दुर्योधन के समान हम भी आज पग-पग पर भूल करते हैं। ईश्वर की उपेक्षा कर हम अपनी ही तुच्छ शक्ति पर सब-कुछ पाने का अहंकार करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अन्त में हमें अशान्ति और असफलता ही प्राप्त होती है। जब युद्ध आरम्भ हुआ, नियमतः भगवान् श्रीकृष्ण को अस्त्र-शस्त्र तो ग्रहण नहीं करना था, पर अर्जुन उनके बिना युद्धस्थल में जाना नहीं चाहता था। उसने अन्त में भगवान् को सारथी बनाया। उसकी युद्ध में केवल विजय ही नहीं हुई वरन् अर्जुन का जीवन भी प्रभुमय हो गया। युद्ध के पूर्व उसे एक प्रकार से सगे-समबन्धियों के प्रति जो मोह उत्पन्न हो गया था, गीता श्रवण द्वारा वह भी नष्ट हो गया।
यह ध्रुव सत्य है कि जहाँ ईश्वरीय सहायता दृश्य अथवा अदृश्य रूप से मिलती है, वहाँ विजय ही विजय मिलती है। यथा;
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
बारहवाँ भाव : मोक्ष अथवा भोग
किसी भी जन्मपत्रिका के चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को 'मोक्ष त्रिकोण भाव' कहा जाता है, जिसमें से बारहवाँ भाव 'सर्वोच्च मोक्ष भाव' कहलाता है। लग्न से कोई आत्मा शरीर धारण करके पृथ्वी पर अपना नया जीवन प्रारम्भ करती है तथा बारहवें भाव से वही आत्मा शरीर का त्याग करके इस जीवन के समाप्ति की सूचना देती है अर्थात् इस भाव से ही आत्मा शरीर के बन्धन से मुक्त हो जाती है और अनन्त की ओर अग्रसर हो जाती है।
रामजन्मभूमि अयोध्या
रात के सप्तमोक्षदायी पुरियों में से एक अयोध्या को ब्रह्मा के पुत्र मनु ने बसाया था। वसिष्ठ ऋषि अयोध्या में सरयू नदी को लेकर आए थे। अयोध्या में काफी संख्या में घाट और मन्दिर बने हुए हैं। कार्तिक मास में अयोध्या में स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ भक्त आकर सरयू नदी में डुबकी लगाते हैं।
जीवन प्रबन्धन का अनुपम ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता
यह सर्वविदित है कि महाभारत के युद्ध में ही श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह उपदेश मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (11 दिसम्बर) को प्रदत्त किया गया था। महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डव और कौरवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण से सहायतार्थ अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही गए थे, क्योंकि श्रीकृष्ण शक्तिशाली राज्य के स्वामी भी थे और स्वयं भी सामर्थ्यशाली थे।
तरक्की के द्वार खोलता है पुष्कर नवांशस्थ ग्रह
नवांश से सम्बन्धित 'वर्गोत्तम' अवधारणा से तो आप भली भाँति परिचित ही हैं। इसी प्रकार की एक अवधारणा 'पुष्कर नवांश' है।
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।