तभी तो कहा जाता है कि बारहवें भाव की कोई सीमा नहीं है। मोक्ष की प्राप्ति ही प्रत्येक आत्मा का अन्तिम लक्ष्य होता है। मोक्ष की प्राप्ति को इसी भाव से देखा जाता है।
'मोक्ष' का अर्थ है जीवन मरण के चक्रव्यूह को तोड़कर बाहर निकल जाना अर्थात् निःसीम परमात्मा में विलीन हो जाना। तभी तो इस भाव का अत्यधिक महत्त्व है। इस भाव के कई महत्त्वपूर्ण कारकत्त्व हैं। मोक्ष के साथ-साथ इस भाव से भोग विलास को भी देखा जाता है। यह भाव शय्यासुख का स्थान भी है। भोग-विलास की भी कोई सीमा नहीं होती, क्योंकि भोग की एक इच्छा पूरी होते ही दूसरी इच्छा बलवती होने लगती है। यह भाव व्यय का भी भाव है। व्यय भी सीमा रहित होता है। अपने देश की सीमा रेखा लाँघकर विदेश गमन भी इसी भाव से देखा जाता है। साथ ही, अस्पताल, जेल, आश्रम तथा पागलखाना भी इसी भाव से देखे जाते हैं।
जन्मपत्रिका के अन्य सभी भावों से बारहवें भाव को जोड़कर इसके कारकत्त्वों को आसानी से समझा जा सकता है। बारहवें भाव का भावेश विभिन्न भावों में स्थित होकर अलग-अलग परिणाम देता है।
यह भाव लग्न से बारहवाँ है। यह भाव शरीर के व्यय को इंगित करता है, अतः जातक के शरीर की ऊर्जा का व्यय किस प्रकार होगा? यह भाव इसकी जानकारी देता है। जातक के शरीर की ऊर्जा का व्यय मोक्ष प्राप्ति में होगा अथवा भोग-विलास, साधना, विदेश में अथवा कहीं और, यह सब बारहवाँ भाव बता सकता है। यदि बारहवें भाव का भावेश लग्न में स्थित हो जाए, तो वह लग्न का व्यय करवाता है, अर्थात् जातक या तो बहुत मेहनत करता है अथवा उसकी प्रकृति अत्यधिक भोग-विलास की हो सकती है अथवा उसकी रुचि मोक्ष प्राप्ति की ओर हो सकती है। वह या तो सांसारिक चीजों से बहुत अधिक जुड़ाव रख सकता है अथवा संन्यास की ओर अग्रसर हो सकता है।
इसके अलावा जातक विदेश जाने का इच्छुक भी हो सकता है और यह सब ग्रहों की स्थितियों पर निर्भर करता है। यह स्थिति बहुत अच्छी नहीं मानी जाती। जन्मपत्रिका में अगर यह स्थिति बनती है, तो जातक को अपना अहंकार अवश्य ही छोड़ना चाहिए, तभी वह इस स्थिति के कुप्रभावों से बच सकता है।
बारहवाँ भाव द्वितीय भाव का ग्यारहवाँ भाव है अर्थात् यह भाव धन भाव का लाभ भाव कहलाता है। दोनों भाव के इस सम्बन्ध से सीधे तौर पर यह कहा जा सकता है कि धन अधिक चाहिए, तो व्यय को कम करना होगा।
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बारहवाँ भाव : मोक्ष अथवा भोग
किसी भी जन्मपत्रिका के चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को 'मोक्ष त्रिकोण भाव' कहा जाता है, जिसमें से बारहवाँ भाव 'सर्वोच्च मोक्ष भाव' कहलाता है। लग्न से कोई आत्मा शरीर धारण करके पृथ्वी पर अपना नया जीवन प्रारम्भ करती है तथा बारहवें भाव से वही आत्मा शरीर का त्याग करके इस जीवन के समाप्ति की सूचना देती है अर्थात् इस भाव से ही आत्मा शरीर के बन्धन से मुक्त हो जाती है और अनन्त की ओर अग्रसर हो जाती है।
रामजन्मभूमि अयोध्या
रात के सप्तमोक्षदायी पुरियों में से एक अयोध्या को ब्रह्मा के पुत्र मनु ने बसाया था। वसिष्ठ ऋषि अयोध्या में सरयू नदी को लेकर आए थे। अयोध्या में काफी संख्या में घाट और मन्दिर बने हुए हैं। कार्तिक मास में अयोध्या में स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ भक्त आकर सरयू नदी में डुबकी लगाते हैं।
जीवन प्रबन्धन का अनुपम ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता
यह सर्वविदित है कि महाभारत के युद्ध में ही श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह उपदेश मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (11 दिसम्बर) को प्रदत्त किया गया था। महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डव और कौरवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण से सहायतार्थ अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही गए थे, क्योंकि श्रीकृष्ण शक्तिशाली राज्य के स्वामी भी थे और स्वयं भी सामर्थ्यशाली थे।
तरक्की के द्वार खोलता है पुष्कर नवांशस्थ ग्रह
नवांश से सम्बन्धित 'वर्गोत्तम' अवधारणा से तो आप भली भाँति परिचित ही हैं। इसी प्रकार की एक अवधारणा 'पुष्कर नवांश' है।
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।