संसार में सिर्फ 'महावीर' ने आत्मा को 'समय' कहा
Jyotish Sagar|November 2023
समय ही मनुष्यों के भीतर आत्मा के शिखरतम विकास की खबर दे रहा है। दरअसल समय के फलक पर इतनी गहरी दृष्टि के कारण ही महावीर सत्य के सम्पूर्ण स्वरूप को आकलित कर पाए।
डॉ. विभा खरे
संसार में सिर्फ 'महावीर' ने आत्मा को 'समय' कहा

पूरी दुनिया में सत्य का स्वरूप इकलौता माना गया है। सत्य तो बस एक है, उसके सिवाय सब झूठ हैं : ‘एकमेव सत्यं, इतरं मिथ्या।' इस जनधारणा ने शताब्दियों से मानव सभ्यता को छला है। सभ्यता के प्रत्येक युग में चूँकि धर्म ने ही सत्य के सन्दर्भ में सर्वाधिक अनुशीलन और अन्वेषण किया है। इसलिए प्रत्येक युग में धर्म की नदी नहीं, वरन् खून की नदियाँ बहायी हैं। अतीत से लेकर अब तक बेशुमार युद्धों का सूत्रपात धर्म के ही जरिये हुआ है।

यह विडम्बना ही है कि जिस धर्म का दावा 'चरम शान्ति की उपलब्धता' रहा है, उसी से युद्ध, हिंसा, अशान्ति के अनेक ज्वारभाटे वजूद में आए हैं। यह दूभर विडम्बना सत्य के इकलौते, इकहरे और एकमात्र स्वरूप की धारणा के कारण ही सम्भव हुई है। संसार में जितने धर्म संस्थान विकसित हुए, सबने सत्य का अपने-अपने तरीके से साक्षात्कार किया। उनकी धारणाबद्ध दृष्टि में उनका जाना सत्य ही 'एकमात्र सत्य बना और बाकी सब झूठा'

अनुयायियों के लिए भी यही 'एकमात्र सत्य' इकलौता और अन्तिम सत्य साबित हुआ। कोई भी धर्म संस्थान अपने ‘एकमात्र सत्य' के सिंहासन से नीचे उतरकर दूसरे धर्म संस्थान के सत्य को स्वीकार करने के लिए स्वभावतः राजी नहीं हुआ। परिणामस्वरूप अपने ‘एकमात्र सत्य' को सर्वप्रतिष्ठित और सर्वमान्य करने के प्रयासों ने सभ्यता को युद्धों की विभीषिका में जब-तब धकेल दिया।

धरती पर सिर्फ महावीर ने 'एकमात्र सत्य' की जगधारणा का करीने से खण्डन किया। चरम सत्य को हालाँकि उन्होंने भी करार दिया, लेकिन उसके एकमात्र स्वरूप में भासित किए जा सकने की सम्भावना को उन्होंने साफ तौर पर नकारा। उनकी दृष्टि में सत्य एक जरूर है, पर ऐसा एक, जो विभिन्न सत्यगत टुकड़ों से मिलकर बना है और एकबारगी कभी अपने सम्पूर्ण स्वरूप में प्रत्याभासित नहीं होता। अनगिन सूरतें हैं सत्य की, जिन सबका जोड़-जमा ही चरम सत्य है।

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