[ साढ़ेसाती और ढैया के विशेष सन्दर्भ में ]
'ल' ष्टकवर्ग 'निश्चयात्मक ज्योतिषशास्त्र' है। महर्षि पराशर की मान्यता है कि “मनुष्यों की आयु का ज्ञान और जीवन में आने वाले सुख-दुःख का ज्ञान ही ज्योतिष का प्रयोजन है, लेकिन बृहस्पति या वसिष्ठ भी जब स्वयं निश्चय से फलकथन नहीं कर सकते, तब सामान्य मनुष्यों की क्या सामर्थ्य है।” इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए बृहत्पाराशरहोराशास्त्र में 'अष्टकवर्ग पद्धति' का प्रतिपादन किया गया और इसे 'विशेष ज्योतिषशास्त्र' की संज्ञा दी गई। अष्टकवर्ग के महत्त्व को रेखांकित करते हुए जातकपारिजात के लेखक वैद्यनाथ लिखते हैं कि "कुण्डली में ग्रह चाहे अपने घर में हो, उच्च में हो, मित्रों के वर्ग में हो, चाहे केन्द्रबल हो या अन्य किसी प्रकार का बल हो, यदि वह ऐसी राशि में जाता है, जिसमें उसे शुभ रेखाएँ कम प्राप्त होती हैं, तो ऐसा ग्रह अनिष्टफल देता है।"
इसके विपरीत “चाहे ग्रह दष्ट स्थान में स्थित हो, नीचराशि में हो, शत्रुराशि में हो, शत्रुओं के वर्ग में हो, किन्तु वह अष्टकवर्ग में अधिक शुभ रेखाओं से त राशि में स्थित हो, तो शुभफल प्रदान करता है।” इस प्रकार होरामकरन्द में गुणाकर लिखते हैं" ग्रहों का गोचरफल एक राशि वाले मनुष्यों को एक जैसा मिलकर भिन्न-भिन्न प्राप्त होता है। सूर्यादि सप्तग्रह एवं लग्न के अष्टकवर्ग से जातक के जीवन में आने शुभाशुभ फलों का सूक्ष्म ज्ञान होता है।"
अष्टकवर्ग पद्धति के अन्तर्गत ग्रहों के बलाबल और उनकी शुभाशुभता का ज्ञान उनके भिन्नाष्टक वर्गों से तथा भावों के शुभाशुभ फलों का ज्ञान सर्वाष्टक वर्ग से किया जाता है। इसी प्रकार गोचरफल सूक्ष्म ज्ञान गोष्टकवर्ग से किया जाता है।
जैसाकि विदित है, गोचराष्टक वर्ग में एक राशि को आठ कक्षाओं में विभक्त किया जाता है और प्रत्येक कक्षा का विस्तार 03 अंश 45 कला होता है। ये आठ कक्षाएँ क्रमश: शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध, चन्द्रमा और लग्न की होती है। राशि का इस प्रकार से कक्षाओं में विभाजन को अष्टकवर्ग में 'कक्षा सिद्धान्त' के नाम से जाना जाता है। ये कक्षाएँ इस प्रकार हैं :
गोचराष्टक वर्ग से फलित के सिद्धान्त
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।