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मुगलों ने सल्तनत बख्श दी

Naye Pallav

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Naye Pallav 20

हीरेजी को आप नहीं जानते और यह दुर्भाग्य की बात है। इसका यह अर्थ नहीं कि केवल आपका दुर्भाग्य है, दुर्भाग्य हीरोजी का भी है। कारण, वह बड़ा सीधा-सादा है। यदि आपका हीरोजी से परिचय हो जाए, तो आप निश्चय समझ लें कि आपका संसार के एक बहुत बड़े विद्वान से परिचय हो गया।

- भगवती चरण वर्मा

मुगलों ने सल्तनत बख्श दी

हीरोजी को जाननेवालों में अधिकांश का मत है कि हीरोजी पहले जन्म में विक्रमादित्य के नव-रत्नों में एक अवश्य रहे होंगे और अपने किसी पाप के कारण उनको इस जन्म में हीरोजी की योनि प्राप्त हुई। अगर हीरोजी का आपसे परिचय हो जाय, तो आप यह समझ लीजिए कि उन्हें एक मनुष्य अधिक मिल गया, जो उन्हें अपने शौक में प्रसनन्‍नतापूर्वक एक हिस्सा दे सके।

हीरोजी ने दुनिया देखी है। यहां यह जान लेना ठीक होगा कि हीरोजी की दुनिया मौज और मस्ती की ही बनी है। शराबियों के साथ बैठकर उन्होंने शराब पीने की बाजी लगाई है और हरदम जीते हैं। अफीम के आदी हैं; पर अगर मिल जाय तो इतनी खा लेते हैं, जितनी से एक खानदान का खानदान स्वर्ग की या नरक की यात्रा कर सके। भंग पीते हैं तबतक, जबतक उनका पेट न भर जाय। चरस और गांजे के लोभ में साधु बनते-बनते बच गए। एकबार एक आदमी ने उन्हें संखिया खिला दी थी, इस आशा से कि संसार एक पापी के भार से मुक्त हो जाय; पर दूसरे ही दिन हीरोजी उसके यहां पहुंचे। हंसते हुए उन्होंने कहा "यार, कल का नशा, नशा था। रामदुहाई, अगर आज भी वह नशा करवा देते, तो तुम्हें आशीर्वाद देता। लेकिन उस आदमी के पास संखिया मौजूद न थी।

हीरोजी के दर्शन प्रायः चाय की दुकान पर हुआ करते हैं। जो पहुंचता है, वह हीरोजी को एक प्याला चाय का अवश्य पिलाता है। उस दिन जब हम लोग चाय पीने पहुंचे, तो हीरोजी एक कोने में आंखें बंद किए हुए बैठे कुछ सोच रहे थे। हम लोगों में बातें शुरू हो गईं, और हरिजन-आंदोलन से घूमते-फिरते बात आ पहुंची दानवराज बलि पर। पंडित गोवर्धन शास्त्री ने आमलेट का टुकड़ा मुंह में डालते हुए कहा "भाई, यह तो कलियुग है। न किसी में दीन है, न ईमान। कौड़ी-कौड़ी पर लोग बेईमानी करने लग गए हैं। अरे, अब तो लिखकर भी लोग मुकर जाते हैं। एक युग था, जब दानव तक अपने वचन निभाते थे, सुरों और नरों की तो बात ही छोड़ दीजिए। दानवराज बलि ने वचनबद्ध होकर सारी पृथ्वी दान कर दी थी। पृथ्वी ही काहे को स्वयं अपने को भी दान कर दिया था।”

हीरोजी चौंक उठे। खांसकर उन्होंने कहा "क्या बात है ? जरा फिर से तो कहना !"

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Cette histoire est tirée de l'édition Naye Pallav 20 de Naye Pallav.

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