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पैकेज किसके लिए?
करोड़ रुपये की वृद्धि की है। दूसरे प्रदेशों से लौट रहे श्रमिकों के समक्ष गहरा आर्थिक संकट है। उन्हें रोजगार की अधिक जरूरत है ताकि उनकी जिंदगी चल सके।
उच्चतम न्यायालय की स्वतःप्रेरणा से प्रवासियों श्रमिकों पर निर्णय!
उच्चतम न्यायालय की स्वतःप्रेरणा से प्रवासियों श्रमिकों पर निर्णय!
नुकसान तो बहुत हुआ है पर अब फिर उठ खड़े होकर आगे बढ़ने का समय
समस्याएं सब गिना रहे हैं, समाधान कोई नहीं बन रहा है। 12 करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं और उद्योग-व्यापार ठप्प है। देश में गरीबी की सीमा रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या 21.7 प्रतिशत से बढ़ कर 40 प्रतिशत से ऊपर तक होने की संभावनाएं हैं। अब लॉकडाऊन आंशिक रूप से उठ गया है, इससे सामान्य जीवन के धीरे-धीरे पटरी पर लौटने में मदद मिलेगी। यही वह क्षण है जिसकी हमें प्रतीक्षा थी और वह सोच है जिसका आह्वान है अभी और इसी क्षण हमें कोरोना महामारी के साथ जीने की संयम, धैर्य एवं मनोबल पूर्ण एवं सावधानीपूर्ण तैयारी करनी होगी। कोरोना लम्बा चलने वाला है और उससे पीड़ितों की संख्या भी चौंकाने वाली होगी, इसलिये असली परीक्षा अब है। हम अपनी जमीं को इतना उर्वर बना लें जिस पर उगने वाला हर फल हम सबके जीवन को रक्षा दे और हर फूल अपनी सौरभ हवा के साथ कोरोना मुक्ति का स्वस्थ परिवेश सब तक पहुंचा दें।
'बस' की राजनीति! 'लोकतंत्र' की 'जिजीविषा' का द्योतक है
'विगत दिनों से उत्तर प्रदेश में 1000 बसों पर राजनीति चल रही है, लेकिन बस, सिर्फ “बस
कोरोना बीमारी कहीं हिंदी भाषा को अंग्रेजी से संक्रमित तो नहीं कर कर रही है?
इस कोरोना काल में कई नए नए शब्दों का ईजाद हो रहा है। इनसे हम रोज रूबरू हो रहे हैं। इन शब्दों को देखने से यह बात ध्यान में आई किये सब अंग्रेजी शब्द जिनका उपयोग वर्तमान में धड़ल्ले से हो रहा है, क्या इनके हिंदी शब्द नहीं हैं? जिनका अर्थ समान व सामान्य रूप से वही समझा जा सके? वैसे भी आज के जमाने में “शुद्धता“ कहां रह गई है? 'मिश्रण (मिलावट) का जमाना है। इसी कारण हिंदुस्तान के नागरिकों के जीवन में ज्यादातर अंग्रेजी मिश्रित हिंदी का प्रयोग काफी समय से बहुत ज्यादा में चलन में है
आत्मनिर्भर भारत कृषि क्रान्ति का नया सोपान
सब कुछ थम गया कोविड-19 की विपरीत परिस्थितियों में शहर थम गए, रेल रुक गई, हवाई जहाज नहीं उड़े, पर जो नहीं ठहरा, वह भारत का किसान था। देश का मेरुदंड बनकर तना हुआ खड़ा था। कोरोना महामारी के शुरुआती दौर में रबी की फसल पककर कटने को तैयार थी। किसी विद्वान ने कहा है कि 'दुनिया में सारी चीजें प्रतीक्षा कर सकती है, पर कृषि नहीं ।ये काम नियत समय पर ही होना था। भारत सरकार ने भी इसकी अनिवार्यता जानते हुए लॉक डाउन में सबसे पहले खेती से जुड़े कामों को करने की रियायत दी। पर केवल बंधनों में छूट देने पर ही नहीं रुकी सरकार। कृषक और कृषि की भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार राहत का पैकेज लाई।
आरोग्य सेतु एप पर आखिर इतने सवाल उठ क्यों रहे हैं?
अगर वैज्ञानिक आविष्कारों और तकनीक के विकास के दौरान यह भुला दिया जाये कि मानवाधिकारों का आदर या सम्मान नहीं होगा तो, किसी भी तरह का विकास टिकाऊ साबित नहीं होगा।
सिजोफ्रेनियाः मानसिक रोगी
हमारे शरीर में रोग के दो स्थान होते हैं एक शरीर और दूसरा मन दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं, यदि शरीर रुग्ण हो तो उसका प्रभाव मन पर पड़ता हैं और मन से रुग्ण होता हैं तो उसका प्रभाव शरीर पर भी पड़ता .अतः हम समझ नहीं पाते की यह मानसिक रोगी हैं या शारीरिक रोगी हैं. कारण मन के रोगी को समझना और उसका नामकरण कभी कभी कठिन होता हैं ,उसके लिए आजकल मनोचिकित्सक या सायुरोग चिकित्सक की भूमिका महत्वपूर्ण होती हैं पर आयुर्वेद में भी इसका इलाज़ हैं, भ्रम रोग में रोगी का शरीर मुख्यतः सर घूमता हैं ,वह चक्कर खाकर भूमि पर बार बार गिरता हैं इस रोग में रजोगुण और वात और पित्त का प्राधान्य रहता हैं इस रोग में मानसिक दोष रज और शारीरिक दोष वात और पित्त दोष रहते हैं इस अवश्था में तमोगुण की अल्पता से चेतना का नाश नहीं होता अतः रोगी शरीर और मष्तिष्क में होने वाली चक्कर की क्रिया का अनुभव भलीभांति करता हैं. वात और पित्त के कारण मतिविभ्रमता होती हैं.
मयखानों की भीड़ कहीं अस्पतालों में कोरोना मरीजों की लाइनेंना लगवा दे
शराब के ठेकों पर उड़ाई जा रही सोशल डिस्टेंसिंग की धजिज्यां
प्रोत्साहन और सुधार का विवेकपूर्ण सामंजन
देश की वित्त मंत्री द्वारा लगातार पांच दिनों से की जा रही घोषणाओं में प्रोत्साहन और सुधार का विवेकपूर्ण सामंजन किया गया है। कोविड-19 से उत्पन्न चुनौती को देखते हुए व्यवसाय एवं उद्यम क्षेत्र में उत्पन्न परिस्थिति से निबटने के लिए नीतिगत सुधार के साथ- साथ लॉकडाउन अवधि में आर्थिक स्थिति को दुरुस्त करने के लिए सुविचारित पैकेज प्रस्तुत किया गया है। वित्तमंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत आर्थिक सहयोग के अलावा लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराकर तात्कालिक राहत दी गई। इसके अलावा टैक्स रियायत एवं ईपीएफ में सहयोग भी किया गया है।
पीएम ने दिया 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज
विचारों, नये इंसानी रिश्तों, नये सामाजिक संगठनों, नये रीति-रिवाजों और नयी जिंदगी की हवायें लिए हुए आत्मनिर्भर भारत की एक ऐसी गाथा लिखी जाएंगी, जिसमें राष्ट्रीय चरित्र बनेगा, राष्ट्र सशक्त होगा, न केवल भीतरी परिवेश में बल्कि दुनिया की नजरों में भारत अपनी एक स्वतंत्र हस्ती और पहचान लेकर उपस्थित होगा।
न्यायपालिका के दबाव में होने का दुष्प्रचार करने वाले जरा गिरेबाँ में झाँक कर देखें
राम मंदिर, राफेल, पीएम केयर, कोरोना, प्रवासी मजदूर पर यह झूठ खड़ा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के आगे नतमस्तक है। इस नए नैरेटिव के बीच सवाल यह है क्या वाकई न्यायपालिका को मौजूदा सत्ता ने भयादोहित कर रखा है ? सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार के विरुद्ध लाई गईं तीन याचिकाएँ न केवल खारिज की हैं बल्कि प्रशांत भूषण जैसे वकील को चेतावनी जारी कर यहां तक कहा कि आप पीआईएल लेकर आये हैं या पब्लिसिटी याचिका।
अपना जीवन दाँव पर लगाकर भी क्यों सेवा कार्य करते हैं आरएसएस के लोग
चारों और श्रेय लेने की होड़ लगी है। ऐसी स्थिति में संघ प्रमुख भागवत स्वयंसेवकों को मार्गदर्शित करते हुए कहते हैं- हमें निरहंकार वृत्ति से सेवा कार्य में जुटना चाहिए। हम जो कर रहे हैं, उसमें समाज की सहभागिता है, इसलिए उसका श्रेय स्वयं न लेकर दूसरों को देना चाहिए। देश के किसी भी हिस्से में, जब भी आपदा की स्थितियां बनती हैं, तब राहत/सेवा कार्यों में राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ के कार्यकर्ता बंधु अग्रिम पंक्ति में दिखाई देते हैं। चरखी दादरी विमान दुर्घटना, गुजरात भूकंप, ओडिसा चक्रवात, केदारनाथ चक्रवात, केरल बाढ़ या अन्य आपात स्थितियों में संघ के स्वयंसेवकों ने पूर्ण समर्पण से राहत कार्यों में अग्रणी रहकर महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। अब जबकि समूचा देश ही कोरोना जैसे महामारी से जूझ रहा है, तब भी संघ के स्वयंसेवक आगे आकर सेवाकार्यों में जुटे हुए हैं।
इस तरह धीरे-धीरे वापस पटरी पर आ सकती है देश की अर्थव्यवस्था
सरकार ने बजटीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3.8 प्रतिशत तक बढ़ाने का फैसला किया है परंतु आज की स्थितियों को देखते हुए यह 2020-21 में इससे भी काफ़ी अधिक हो सकता है। क्योंकि, केंद्र एवं राज्य सरकारों को विभिन्न करों से आय बहुत कम होने की सम्भावना है। देश में धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से बाज़ारों को खोला जा रहा है। ग्रीन जोन एवं ऑरेंज ज़ोन में व्यापार, उत्पादन एवं अन्य गतिविधियों के लिए काफ़ी छूट दी जा रही है एवं रेड जोन में भी कुछ हद तक छूट प्रदान की गई है। बहुत सम्भव है कि देश के कुछ क्षेत्रों में अगले लगभग 15 दिनों के बाद लॉकडाउन को पूरे तरह से समाप्त कर दिया जाये।
कोरोना ने बदला जीवन
आज कोरोना ने महामारी का रूप धारण कर लिया है। मनुष्य यही सोचने में मगसूल था कि हमने बड़ी-बड़ी खोजें कर लीं। मंगल ग्रह तक पहुंच गए। अब सब कुछ संभव है ।कोई राष्ट्र किसी राष्ट्र से अपने आपको काम नहींआकता था ।लोग अपने ही गुमान में मगन थे। लोगों का जीवन दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति पथ पर तीव्र गति से दौड़ रहा था। कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता था ।पाश्चमात्य सभ्यता लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रही थी किसे पता था कि कोरोना जैसा निर्जीव वायरस प्रगति पथ को रोक लेगा और जीवन परिवर्तित कर देगा। परिवर्तन ही संसार का नियम है। इस युक्ति को कोरोना वायरस ने सिद्ध कर दिया।कोरोना ने जीवन परिवर्तीत कर दिया है ।लोगों को अपने बनाए घर में ही कैद रहने पर मजबूर कर दिया है।
साढ़े बारह वर्ष के साधनाकाल में भगवान महावीर ने दिये आदर्श जीवन के सूत्र
जो व्यक्ति कोरोना से मुक्ति चाहता है, स्वस्थ बनना चाहता है और स्वस्थ रहना चाहता है, उसे कायोत्सर्ग रूप औषधि का सेवन करना होगा। चिकित्साशास्त्र में जिस औषधि के घटक तत्त्वों का कोई उल्लेख नहीं है, उसका विज्ञान महावीर के पास था।
बैसाखी पर करें दुनिया को कोरोना से मुक्ति दिलाने की अरदास
बैसाखी पर करें दुनिया को कोरोना से मुक्ति दिलाने की अरदास
तबलीगी जमात की करतूतों के खिलाफ धर्म गुरुओं को आगे आना चाहिए
तबलीगी जमात की आपराधिक लापरवाही के कारण पूरे देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है, कोरोना के जितने नए मामले सामने आ रहे हैं उसमें से 90 प्रतिशत मामले तबलीगी जमात के चलते ही बढ़े हैं।
चिंतन और मंथन की आवश्यकता
चिंतन और मंथन की आवश्यकता
कोरोना बीमारी और सरकार की जिम्मेवारी
कोरोना वायरस एक विश्व महामारी के रूप में घोषित हो चुका है। इससे लाखों लोग पीड़ित हैं और 20 हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। भारत के प्रधानमंत्री एक सप्ताह के अन्दर दो बार देश को सम्बोधित कर चुके हैं।
कोई यह नहीं समझा पा रहा है।
नागरिक संशोधन अधिनियम 2019 के पारित होने के लगभग 50 दिन व्यतीत हो जाने के बावजूद देश के विभिन्न अंचलों में सीएए के समर्थन में एवं (एनआरसी व एनपीआर सहित) सीएए के विरोध में प्रदर्शनों का दौर लगातार चालू है। समर्थक व विपक्ष दोनों वर्गों के लोगों को वास्तविक रूप में प्रायः यह मालूम ही नहीं है कि वे किस विषय के समर्थन में अथवा विरोध में रैली, जुलूस, प्रदर्शन तथा संगोष्ठी इत्यादि आयोजित कर रहे है, भाग ले रहे हैं। राजनैतिक पार्टियों के द्वारा भी पक्ष व विरोध दोनों वर्गों के बीच सफलता पूर्वक एक भ्रम व संदेह की स्थिति पैदा कर दी गई है। देश की बहुआयामी-बहु-उद्देशीय विचार धारा को इस सीएए की लक्ष्मण रेखा के दोनों तरफ आमने-सामने खड़ा कर के बिल्कुल सीमित बना दिया गया है। विचारों का इतना सीधा (भ्रामक) विभाजन भी देश में शायद पहली बार ही हुआ है। विभाजन की सीमा तो देखिये, जो समर्थक हैं, वे देश प्रेम का तमगा पा रहे हैं, और जो विरोधी हैं, वे क्षण भर में देश द्रोही ठहरा दिये जा रहे है।
कोरोनावायरस से डरिए मत... इससे संक्रमित होने का मतलब मौत नहीं है
चीन में कोरोना संक्रमण के 80 हजार से भी ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं और तीन हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। संक्रमण के मामले में चीन, ईरान, इटली, कोरिया तथा सिंगापुर की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है।
देशभर के बिजली बोर्डो के बुरे हाल के पीछे चल रहे बड़े खेल को समझना जरूरी
बिजली के खेल को समझने के लिए विद्युत अधिनियम 2003 की उस भावना को समझने की जरूरत है जो बुनियादी तौर पर निजीकरण की वकालत करती है। भारतीय विद्युत अधिनियम 1910 और इंडियन इलेक्ट्रिक एक्ट 1948 बिजली क्षेत्र में किसी भी निजी भागीदारी को निषिद्ध करता था।
क्या 'आंदोलन' को अब 'कानूनी रूप से परिभाषित कर कानून में जोड़ा जायेगा
क्या 'आंदोलन' को अब 'कानूनी रूप से परिभाषित कर कानून में जोड़ा जायेगा
धीरे-धीरे फैलावः कोविड-19 और भारतीय शहरों के लिए सबक
भारत में दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले शहर हैं, जहां प्रतिदिन अत्याधिक भीड़ वाली मेट्रो और बसों में यात्रा करते समय लोगों की एक-दूसरे से दूरी बेहद कम होती है। नोवेल कोरोनावायरस (कोविड 19) मामलों की संख्या बढ़ रही हैं। इसने 100 से अधिक देशों को प्रभावित किया है। इस महामारी को समाप्त करने की योजना बनाने में शहरी आयामों को समझना महत्वपूर्ण है। इससे रोकथाम संबंधी और चिकित्सा संबंधी उपायों को सुनिश्चित किया जा सकेगा। अपने सुदृढ़ नगर प्रबंधन के साथ भारत इस महामारी से लड़ने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है। इतिहास महामारी और नगर योजना के बीच के संबंध को रेखांकित करता है। 19वीं शताब्दी के मध्य में कई आधुनिक नगर प्रणालियों में जल और स्वच्छता आधारित अवसंरचना का विकास हुआ ताकि मलेरिया और हैजा जैसी महामारियों से मुकाबला किया जा सकें। इसी प्रकार 20वीं शताब्दी में स्पैनिश फ्लू से मुकाबला करने के लिए नगर आधारित प्रशासनिक संरचना और संस्थागत रूपरेखा का निर्माण हुआ। स्पैनिश महामारी से परी दनिया में 5 करोड़ लोगों की मौत हुई थी।
भारत में महिला उद्यमियों की चुनौतियां
अधिकांश महिलाएं आज भी सहायक कार्य के रूप में व्यवसायिक गतिविधियों को आगे बढ़ा रही हैं क्योंकि वे घर के अधिकांश कामों को करना जारी रखती हैं। वे अक्सर बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करने में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। जिस प्रकार का व्यवसाय महिलाएं करती हैं उसकी प्रकृति भी पुरुषों की तुलना में अलग है, इसलिए ऋग और समरूपी ऋग की उनकी आवश्यकता अलग है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को अक्सर घर से बाहर निकलने से पहले अपने परिवार में एक पुरुष सदस्य की अनुमति की आवश्यकता होती है और अक्सर सुरक्षा चिंताओं या सामाजिक मानदंडों के कारण पड़ोस के बैंक जाने के लिए उसे एक पुरुष रिश्तेदार को ले जाना पड़ता है। अनेक कारणों से महिलाओं की वित्तीय संसाधनों तक पहुंच सीमित है। महिलाएं उधार से अधिक बचत करती हैं, भारत और विश्व स्तर पर एक खेत या व्यवसाय को चलाती हैं, या उसका विस्तार करती हैं।
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
पिछले कुछ समय से देश में जगह-जगह विभिन्न पार्टियों के चंद नेता अपने जहरीले बयानों से लोगों को सीएए, एनआरसी व एनपीआर के विरोध व पक्ष की आड़ लेकर भड़का रहे थे। सूत्रों के अनुसार उसकी प्रतिक्रिया के रूप में ही दिल्ली में इतना बड़ा सुनियोजित दंगा हुआ है।