अवध विहार योजना 3 आज हमारा देश एक अरब जनसंख्या के आंकड़े को पार कर चुका है अर्थात विश्व परिदृष्य के हिसाब से हमारे देश में विश्व की 4.0 प्रतिशत जलराशि, 2.4 प्रतिशत भू-भाग और 16 प्रतिशत जनसंख्या है। यहां लगभग 60 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि में संलग्न हैं जिनमें तकरीबन 75 प्रतिशत लघु एवं सीमान्त कृषक हैं जिनके पास खेती के लिये भूमि केवल 54.6 प्रतिशत है। अत: इनके जीवन स्तर को सुधारने के लिये लागत प्रभावी तरीके से प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाना अति आवश्यक हैं। हमारी फसलों एवं फलदार पौधों को नाइट्रोजन तत्व की बहुत आवश्यकता होती है। परीक्षणों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि हमारे राज्य में 95-97 प्रतिशत खेतों में नाइट्रोजन की कमी पायी जाती है। वायुमण्डल में लगभग 78 प्रतिशत नाइट्रोजन मौजूद है। पौधे एवं जन्तु सीधे इसे स्वतन्त्र नत्रजन का उपयोग नहीं कर सकते।
राइजोबियम : यह एक नम चारकोल एवं जीवाणु का मिश्रण है जिसके एक ग्राम भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं। यह जैव उर्वरक केवल दलहनी फसलों में प्रयुक्त किया जाता है तथा यह अलग-अलग प्रकार का राइजोबियम जीवाणु कल्चर का प्रयोग होता है। राइजोबियम जैव उर्वरक से बीज उपचार करने पर ये जीवाणु बीज पर चिपक जाते हैं। बीज अंकुरण के समय ये जीवाणु पौधों की जड़ों में प्रवेश करके जड़ों पर ग्रन्थियों का निर्माण करते हैं। ये ग्रन्थियाँ नाइट्रोजन स्थिरीकरण इकाइयां हैं तथा पौधें की बढ़वार इनकी संख्या पर निर्भर करती है। अधिक ग्रन्थियों के होने पर पैदावार भी अधिक होती है। राइजोबियम जीवाणु सहजीवी के रूप में पौधों की जड़ों में ग्रन्थियों के रूप में नत्रजन का संचय करती हैं। इस विधि से संचित 10 किलोग्राम कार्बनिक नत्रजन, 100 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट के बराबर होती है।
राइजोबियम इनाकुलेन्ट : दलहनी फसलों की जड़ों पर दो प्रकार की ग्रन्थियां होती हैं।
この記事は Modern Kheti - Hindi の 1st August 2022 版に掲載されています。
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सब्जियों की जैविक खेती
सब्जियों की जैविक खेती हमारे देश में हरित क्रांति के अंतर्गत सिंचाई के संसाधनों के विकास, उन्नतशील किस्मों और रासायनिक उर्वरकों एवं कृषि रक्षा रसायनों के उपयोग से फसलों के उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई। लेकिन समय बीतने के साथ फसलों की उत्पादकता में स्थिरता या गिरावट आने लगी है। इसका प्रमुख कारण भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रास होना है।
किसानों के लिए पैसे बचाने का महत्व एवं बचत के आसान सुझाव
किसानों के लिए बचत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करती है। खेती एक जोखिम पूर्ण व्यवसाय है जिसमें मौसम, फसल की बीमारी और बाजार के उतार-चढ़ाव जैसी कई अनिश्चितताएं शामिल होती हैं।
उर्द व मूंग में एकीकृत रोग प्रबंधन
दलहनी फसलों में उर्द व मूंग का प्रमुख स्थान है। जायद में समय से बुवाई व सघन पद्धतियों को अपनाकर खेती करने से इन फसलों की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। जायद में पीला मौजेक रोग का प्रकोप भी कम होता है।
ढींगरी खुम्ब उत्पादन : एक लाभकारी व्यवसाय
खुम्बी एक पौष्टिक आहार है जिसमें प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन जैसे पोषक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। खुम्बी में वसा की मात्रा कम होने के कारण यह हृदय रोगियों तथा कार्बोहाईड्रेट की कम मात्रा होने के कारण मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा आहार है। खुम्बी एक प्रकार की फफूंद होती है। इसमें क्लोरोफिल नहीं होता और इसको सीधी धूप की भी जरूरत नहीं होती बल्कि इसे बारिश और धूप से बचाकर किसी मकान या झोंपड़ी की छत के नीचे उगाया जाता है जिसमें हवा का उचित आगमन हो।
वित्तीय साक्षरता को उत्साहित करने में सोशल मीडिया की भूमिका
आधुनिक डिजिटल प्रौद्योगिकी का पूरी तरह से प्रयोग करना एवं भविष्य में वित्तीय सुरक्षा को यकीनन बनाने के लिए, प्रत्येक के लिए वित्तीय साक्षरता आवश्यक है। यह यकीनन बनाने के लिए कि आपका वित्त आपके विरुद्ध काम करने की बजाये आपके लिए काम करती है, ज्ञान एवं कुशलता की एक टूलकिट्ट की जरूरत होती है।
मेथी की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
मेथी (Fenugreek) की खेती पूरे भारत में की जाती है। इसका सब्जी में केवल पत्तियों का प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही बीजों का प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता है।
जैविक खादों का प्रयोग बढ़ायें
भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए उपजाऊ शक्ति को बनाये रखना बहुत जरूरी है। वर्ष 2025 में 30 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन के लिए लगभग 45 मिलियन टन उर्वरकों की जरूरत होगी, लेकिन एक अन्दाज के अनुसार वर्ष 2025 में 35 मिलियन टन उर्वरकों का प्रयोग किया जायेगा।
गेंदे की वैज्ञानिक खेती से लाभ
गेंदा बहुत ही उपयोगी एवं आसानी से उगाया जाने वाला फूलों का पौधा है। यह मुख्य रूप से सजावटी फसल है। यह खुले फूल, माला एवं भू-दृश्य के लिए उगाया जाता है।
विनाशकारी खरपतवार गाजरघास की रोकथाम
अवांछित पौधे जो बिना बोये ही उग जाते हैं और लाभ की तुलना में ज्यादा हानिकारक होते हैं वो खरपतवार होते हैं। खरपतवार प्राचीन काल से ही मनुष्य के लिये समस्या बने हुये हैं, खेतों में उगने पर यह फसल की पैदावार व गुणवत्ता पर विपरीत असर डालते हैं।
खेती में बुलंदियों की ओर बढ़ने वाला युवक किसान - नितिन सिंह
उत्तर प्रदेश का एग्रीकल्चर सैक्टर काफी तेजी से ग्रो कर रहा है। इस सैक्टर को लेकर सबसे खास बात यह है कि देश के युवा भी इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। इसी क्रम में हम आपको यूपी के सीतापुर के रहने वाले एक ऐसे युवक की कहानी बताने जा रहे हैं, जो लाखों युवा किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं।