अरण्ड एक प्रमुख तिलहनी फसल है। यह दुनिया भर में मुख्य: तौर पर भारत, चीन और ब्राजील में उगाई जाती है। अरण्ड उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है। भारत कुल उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत उत्पादन करता हैं। वर्ष 2014-15 में भारत में लगभग 1.73 मिलियन टन अरण्ड का उत्पादन किया गया। भारत में अरण्ड उत्पादन में गुजरात आन्ध्र प्रदेश तथा राजस्थान अग्रणीय राज्य है। ये तीनों राज्य मिलकर भारत के कुल उत्पादन का लगभग 96 प्रतिशत उत्पादन करते हैं। पहले अरण्ड की खेती बेकार पड़ी असिंचित भूमि में की जाती थी परन्तु अब इसकी खेती से सिंचित क्षेत्रों में उन्नत तरीके अपनाकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। ऐसे में इन क्षेत्रों में अरण्ड एक लाभदायक फसल साबित हो सकती है। इसके तेल का उपयोग अनेक उद्योगों साबुन, हाइड्रोलिक और ब्रेक तरल पदार्थ, पेंट, रंग, स्याही, ठंड प्रतिरोधी प्लास्टिक, मोम नायलॉन, फार्मास्यूटिकल्स और इत्र के निर्माण में किया जाता है।
उन्नत किस्में :
सी.एच.-1 : इस किस्म की पैदावार 7.2 क्विंटल प्रति एकड़ है। अरण्ड की फसल बिजाई के लगभग 110 दिन बाद पक कर तैयार होती है। इस किस्म में तेल 49 प्रतिशत होता है।
जी.सी.एच-4 / जी.सी.एच-5 : ये संकर किस्में हैं, जड़गलन प्रतिरोधी है तथा सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं। इनकी पैदावार क्रमशः 8 व 9 क्विंटल प्रति एकड़ है।
डी.सी.एच-32 / डी.सी.एच-177 : ये संकर किस्में हैं। मुरझाने की प्रतिरोधी है। डी.सी.एच.- 32 सिंचित क्षेत्रों के लिए तथा डी.सी. एच. 177 असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इनकी पैदावार क्रमश: 9 व 7.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।
बिजाई का समय व विधि : वैसे तो अरण्ड हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है परन्तु अच्छी निकासी वाली रेतीली या रेतीली दोमट मिट्टी इसके उत्पादन हेतु उपयुक्त होती हैं। इसकी खेती के लिए खेत की बिजाई से पहले एक गहरी जुताई करके अच्छी तरह तैयार करें। बिजाई के लिए जून अन्तिम सप्ताह से मध्य जुलाई का समय उपयुक्त है। एक एकड़ के लिए 2 कि. ग्राम बीज का प्रयोग करें। कतारों के बीच 90 सैंटीमीटर तथा पौधों में 60 सैंटीमीटर की दूरी रखें।
बीज की मात्रा एवं बिजाई की विधि :
この記事は Modern Kheti - Hindi の 1st August 2022 版に掲載されています。
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कपास विज्ञानी - डॉ. इब्रोखिम वाई. अबदूराखमोनोव
डॉ. इब्रोखिम वाई. अबदूराखमोनोव एक उजबेक विज्ञानी हैं जिनको 2013 के इंटरनेशनल कॉटन एडवाईजरी कमेटी रिसर्चर के तौर पर जाना जाता है। डॉ. इब्रोखिम वाई. अबदूराखमोनोव कोलाबोरेटर प्रोजैञ्चट डायरेञ्चटर हैं।
बिहार का सॉफ्टवेयर इंजीनियर कर रहा ड्रैगन फ्रूट की खेती
आज के अधिकांश युवा पीढ़ी के किसान अपनी पारंपरिक खेती से दूर हो रहे हैं। उसी में कुछ ऐसे किसान हैं जो स्टार्टअप के रूप में अत्याधुनिक खेती कर लाखों रुपए कमा रहे हैं।
अब मशीनें पकड़ेंगी दूध में यूरिया की मिलावट
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मिट्टी जांच के लिए आईआईटी कानपूर ने बनाई मशीन
आईआईटी कानपुर ने मिट्टी की जांच के लिए एक डिवाइस विकसित किया है, जो 90 सैकेंड में मिट्टी के 12 पोषक तत्वों की जांच कर सकता है। यह उपकरण किसानों को उनकी मिट्टी की गुणवत्ता के बारे में तुरंत जानकारी प्रदान करेगा, जिससे वे अपनी फसलों को उचित पोषण दे सकते हैं।
हजार साल पुराना बीज भी हुआ अंकुरित
कृषि वैज्ञानिकों, वनस्पति विज्ञानियों और इतिहासकारों के एक अंतराष्ट्रीय दल को हजार साल पुराने बीज को उगाने में सफलता मिली है। इस बीज से फूटा अंकुर अब एक परिपक्व पेड़ में तब्दील हो चुका है। गौरतलब है कि यह बीज इजरायल की एक गुफा में पाया गया था।
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क्या जीएम फसलें लाभकारी हैं?
जेनेटिकली मोडीफाईड फसलें (जीएम) एक बड़े विवाद का विषय रही हैं। हाल ही में मैक्सिको की सरकार ने अपनी सबसे महत्वपूर्ण फसल मक्का को जीएम से बचाने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है।
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