बाजरे की खेती और पैदावार
Modern Kheti - Hindi|15th July 2024
अधिक बाजरे का उत्पादन और लाभ हेतु उन्नत प्रौद्योगिकियां अपना आवश्यक है। भारत दुनिया का अग्रणी बाजरा उत्पादक देश है। भारतवर्ष में लगभग 85 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में बाजरे की खेती की जाती है, जिसमें से 87 प्रतिशत क्षेत्र राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा राज्यों में है।
बाजरे की खेती और पैदावार

देश के शुष्क तथा अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में यह प्रमुख खाद्य है और साथ ही पशुओं के पौष्टिक चारा उत्पादन के लिए भी बाजरे की खेती की जाती है। पोषण की दृष्टि से जहां इसके दाने में अपेक्षाकृत अधिक प्रोटीन (10.5 से 14.5 प्रतिशत) और वसा (4 से 8 प्रतिशत) मिलती है, वहीं कार्बोहाइड्रेट, खनिज तत्व, कैल्शियम, केरोटिन, राइबोफ्लेविन (विटामिन बी-2) और नायसिन (विटामिन बी-6) भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

गेहूं एवं चावल की अपेक्षा बाजरे में लौह तत्व भी अधिक होता है। अधिक ऊर्जा होने के कारण बाजरे को सर्दियों के मौसम में खाने में अधिक प्रयोग किया जाता है। बाजरा के चारे में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस और खनिज लवण उपयुक्त मात्रा में एवं हाइड्रोरासायनिक अम्ल सुरक्षित मात्रा में पाया जाता है। भारत के कुल बाजरा क्षेत्र का लगभग 95 प्रतिशत असिंचित है, जिससे मानसून की अनिश्चितता की तरह बाजरा की उत्पादकता में भी उतार-चढ़ाव रहता है।

इसके अतिरिक्त, कुछ रोगों और कीटों का प्रकोप एवं वैज्ञानिक तरीके से फसल प्रबंधन नहीं होने से भी इस फसल की पैदावार अन्य खरीफ की अनाज वाली फसलों की तुलना में कम हो जाती है। परन्तु यदि सही किस्म का चुनाव और खेती के लिए उन्नत सस्य तथा पौध संरक्षण तकनीकियां अपनाई जाएं तो बाजरा की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है। इस लेख में बाजरे से जुड़ी खेती की हर जानकारी का उल्लेख है।

बाजरे की खेती के लिए भूमि और जलवायु

भूमि- बाजरे की फसल अच्छी जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में ली जा सकती है। परन्तु बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम है। बाजरे के लिए भारी भूमि कम अनुकूल रहती है और इसके लिए अधिक उपजाऊ भूमियों की आवश्यकता नहीं होती है।

जलवायु- बाजरे की खेती गर्म जलवायु और 400 से 600 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में भली-भांति की जा सकती है। 32 से 37 सेल्सियस तापमान बाजरे के लिए उपयुक्त माना गया है। यदि पुष्पन अवस्था में वर्षा हो जाए या फव्वरों से सिंचाई कर दी जाए तो फूल धुल जाने के कारण बाजरे में दानों का भराव कम हो जाता है। बालियों में दाना भरने की अवस्था में यदि नमी अधिक हो और तापमान कम हो तो अर्गट रोग के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है।

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