
भारत में धान की खेती लगभग 450 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है छोटी होती जोत एवं कृषि श्रमिकों की अनुपलब्धता व जैविक, अजैविक कारकों के कारण धान की उत्पादकता में लगातार कमी आ रही है। इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुये आज हम इस लेख में धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग तथा पहचान और उनके प्रबंधन के बारे में बात करेंगे जिससे कि हमारे किसान साथी अपनी धान की फसल में उस रोग की समय से पहचान करके फसल का बचाव कर सकें।
1. जीवाणु झुलसा या झुलसा रोग
यह रोग जेंथोमोनास ओराइजी नामक जीवाणु से फैलता है। इसे 1908 में जापान में सबसे पहले देखा गया था।
रोग की पहचान
पौधों की चोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक यह बीमारी कभी भी लग सकती है। इस रोग में पत्तिया नोंक अथवा किनारों से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगती हैं। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़े मेढ़े या झुलसे हुये दिखाई देते हैं। इन सूखे हुये पीले पत्तों के साथ-साथ राख के रंग के चकत्ते भी दिखाई देते हैं। संक्रामण की उग्र अवस्था में पत्ती सूख जाती है। बालियों में दाने नहीं पड़ते हैं।
रोग प्रबंधन
» शुद्ध एवं स्वस्थ बीजों का ही प्रयोग करें।
» बीजों को बुआई करने से 2.5 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और 25 ग्राम कापर आक्सी क्लोराइड के घोल में 12 घंटे तक डुबोयें।
» इस बीमारी को लगने की अवस्था में नत्रजन का प्रयोग कम कर दें।
» जिस खेत में बीमारी लगी हो उस खेत का पानी किसी दूसरे खेत में न जाने दें। साथ ही उस खेत में सिंचाई न करें।
» बीमारी को और अधिक फैलने से रोकने के लिए खेत में समुचित जल निकास की व्यवस्था की जानी चाहिए।
2. धान का झोंका रोग
यह धान की फसल का मुख्य रोग है जो एक पाइरीकुलेरिया ओराइजी नामक फफूंद से फैलता है।
この記事は Modern Kheti - Hindi の 15th October 2024 版に掲載されています。
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