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जिल पडलर
दक्षिण अफ्रीका की गणित शिक्षा शोधकर्ता
शक्तिशाली... सर्वव्यापी... जीवन का आधार, 'फफूंदों का अनोखा संसार
शक्तिशाली... सर्वव्यापी... जीवन नहीं बल्कि फफूंद की बात कर रही हूँ।
चिचड़ी (टिक)
"जानवर की याददाश्त होती है, पर कोई यादें नहीं।" हेमन्न स्टाइनथल (Heymann Steinthal)
छतरी
कहानी - छतरी
क्यों करें प्रयोग?
विज्ञान की कक्षा में गतिविधियों के पक्ष में कुछ और कारण
बूँद का कमाल
विज्ञान ज्ञान का पीरियड लग चुका था। मास्साब कक्षा में घुसे तो देखा कि बच्चे फ्यूज़ बल्ब में पानी भरकर अवलोकन कर रहे हैं।
मूँ तो चल्याँ टीको लगवावाँ, तूं भी चाल
ज़मीनी अनुभव, कोरोना काल
कहानी के आगे एक कक्षा अनुभव
शिक्षकों की कलम से
सवालीराम
सवाल: पृथ्वी का छोर कहाँ है?
और फिर उन्होंने एक गहरी साँस ली!
जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वे अलग-अलग तरीकों से अपने आसपास की दुनिया को समझने की कोशिश करते हैं। थोड़ी समझ उनके अपने अवलोकनों के कारण विकसित होती है, थोड़ी अपने माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों की बातचीत सुनकर, तो थोड़ी लोकप्रिय माध्यमों से मिलने वाले सन्देशों से। शिक्षक और पाठ्यपुस्तकें भी बच्चों के ज्ञान के इस भण्डार में इजाफा करते हैं। बहरहाल, अक्सर बच्चे वास्तविक दुनिया के अनुभवों से जो समझ विकसित करते हैं, वह कक्षा में सीखी गई बातों से भिन्न होती है। स्कूली शिक्षा बिरले ही इस दोहरी, समानान्तर समझ पर कोई काम करती है।
प्रकाश का अवलोकन - छायाएँ और प्रतिबिम्ब
क्या छायाएँ पूरी तरह से अँधेरी होती हैं? क्या कुछ छायाएँ अन्य छायाओं से ज़्यादा गहरी होती हैं? एक मोबाइल फोन के कैमरे तथा मनुष्य की आँख में क्या चीज़ समान होती है? क्या कोई प्राकृतिक पिन-होल कैमरा होता है? यदि हम चाहते हैं कि हमें अपना दाहिना हाथ वैसा ही दिखाई दे जैसा वह दूसरों को दिखता है, तो हमें कितने दर्पणों की ज़रूरत होती है? इस लेख में लेखक ने ऐसे कई सरल तरीकों का ज़िक्र किया है जिनके द्वारा, छायाओं और प्रतिबिम्बों का उपयोग करते हुए, प्रकाश के शिक्षण में दैनिक जीवन के अवलोकनों को अवधारणाओं से जोड़ा जा सकता है।
अब्बू खाँ की बकरी
कहानी
साये में बैंकिंग
यदि ठीक से काम करें तो बैंक कमाल के होते हैं और आम तौर पर वे ठीक से काम करते भी हैं। लेकिन नहीं करते तो मानो कयामत आ जाती है, जैसा कि वर्ष 2008 में संयुक्त राज्य अमरीका (यू.एस.ए.) और लगभग सारी दुनिया में हुआ।
सामाजिक बदलाव का माध्यम हैं कहानियाँ
कहानी हानी सुनने-सुनाने का अपना एक अलग ही मज़ा है। गम्भीरता, धैर्य, लगन, मानवीकरण, विश्लेषण और समानुभूति जैसे पहलुओं को विकसित करने और फलने-फूलने के जिन मौलिक गुणों की बच्चों या वयस्कों से अपेक्षा की जाती है, कहानी सुनने-सुनाने की प्रक्रिया में वे स्वतः ही फलने-फूलने और विकसित होने लगते हैं।
कुछ पिटे हुए अनुभव
शिक्षक के हाथों हिंसा का शिकार हुए बच्चे अक्सर भावनात्मक और व्यवहारिक समस्याओं से ताउम्र जूझते हैं। मानसिक तनाव उनके संज्ञानात्मक कौशल और अकादमिक प्रदर्शन पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। स्कूलों में शारीरिक दण्ड और अपमान व्यापक रूप होता आया है, और आज भी यह तमाम नियम-कानूनों के बावजूद भारत समेत कई देशों में स्कूली शिक्षा का अभिन्न हिस्सा है। लेखक ने इन्हीं मुद्दों पर अपने अनुभव साझा किए हैं जो तीन दशक बाद आज भी उतने ही मौजूं हैं।
लौट के बुध्दू घर को आए
कहानी - लौट के बुध्दू अर को आए
कोण को मापे कौन?
यहाँ कोणों के दो बहुत कम चर्चित पहलुओं की चर्चा की गई है जो दो अलग-अलग क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं। पहला हिस्सा, सीधे ही मापन की समस्याओं में जाता है और दूसरा हिस्सा कोणों को मापने के वैकल्पिक तरीकों की चर्चा करता है। तो पढ़ें इस आलेख को, ताकि आप अपनी कक्षा में कोणों को मापने की ऐतिहासिक ज़रूरत एवं वास्तविक जीवन में उनके उपयोग मात्र से कुछ अधिक की चर्चा कर सकें।
एक-सी और अलग-सी चीजें
बीती रात से जमकर हो रही बरसात थमती दिख रही थी। स्कूल कैम्पस में काफी कीचड़ मच गया था।
आश्रमशाला के आदिवासी बच्चों के साथ हाइड्रोपोनिक खेती
बच्चे अपनी असल ज़िन्दगी के अनुभवों और अवलोकनों के साथ कक्षा में आते हैं। क्या इन अनुभवों और अवलोकनों का कक्षा के शिक्षण से कोई सम्बन्ध है? क्या बच्चे विज्ञान सीखने की प्रक्रिया की अगुआई कर सकते हैं? इस प्रक्रिया में शिक्षक की क्या भूमिका हो सकती है?
हम और हमारे विज्ञान समझाने के मॉडल
अक्सर हम विज्ञान की अमूर्त अवधारणाओं को समझाने के लिए मॉडल या सरलीकृत प्रयोगों का सहारा लेते हैं। अगर उनकी सीमाओं को रेखांकित न किया जाए और उनकी सशक्त तार्किक बुनियाद न हो, तो यह ढाँचा कभी भी ध्वस्त हो सकता है। प्रकाश के मॉड्यूल में दिए गए एक प्रयोग की विस्तृत समीक्षा करते हुए लेखक ने इस समस्या को उजागर करने की कोशिश की है।
लौट के बुध्दू घर को आए
कहानी - लौट के बुध्दू घर को आए
रूपान्तरण का अद्भुत महारथी एक ऑक्टोपस
दुनिया टनिया भर के तमाम जीव इसी में उनकी वंश वृद्धि कैसे हो।
जमावट
बाग में स्कूल के बच्चों को देखकर, बकरी चरा रहा बच्चा उनकी ओर टकटकी लगाए हुए था।
जन्तुओं में जनन संवाद की सम्भावनाएँ
धरातलीय वास्तविकता में, अमूमन ‘जन्तुओं में जनन' जैसे अहम विषय पाठ्यचर्या का हिस्सा होते हुए भी, कक्षा में संवाद का हिस्सा नहीं बन पाते। जहाँ एक ओर, शिक्षार्थियों के लिए, इन विषयों को पाठ्यपुस्तक से आगे बढ़कर सामाजिक परिवेशों से जोड़कर समझने की ज़रूरत है, वहीं कक्षा-कक्ष में शिक्षक इन्हें पढ़ाने से भी हिचकते हैं। ऐसे में, कक्षा में संवाद की क्या अहमियत उभरती है? शिक्षक किन कारणों से खुलकर इन विषयों का शिक्षण नहीं कर पाते? ऐसे सवालों और इनसे जुड़े सामाजिक मुद्दों पर रोशनी डालता है यह लेख।
कला शिक्षा की बुनियाद
“बच्चे की कला में सबसे सुन्दर उसकी ‘गलतियाँ होती हैं। जितनी अधिक मात्रा में ये गलतियाँ होती हैं, उतना ही आकर्षक उसका काम होता है। जितना ही उसका शिक्षक उन्हें हटाने की कोशिश करता है, उतना ही बच्चे का काम फीका, निर्धन और व्यक्तित्वहीन हो जाता है।" - फ्रांज़ सिज़ेक
उच्च प्राथमिक कक्षाओं में हिन्दी शिक्षण कुछ अनुभव
प्राथमिक कक्षाओं में भाषा पढ़ाने के नज़रिए एवं विधियों के बारे में करीब डेढ़ दशक से काफी चर्चा होती रही है लेकिन उच्च प्राथमिक कक्षाओं में भाषा पर किस नज़रिए से व कैसे काम करें, इस पर विमर्श कम ही दिखाई पड़ता है।
CUBE – पाठशाला के छात्रों से जुड़े प्रोजेक्ट आधारित विज्ञान प्रयोग
होमी भाभ विज्ञान शिक्षा केन्द्र में CUBE (Collaboratively Understanding Biology Education), सहयोग से विज्ञान के प्रयोग करने की एक संस्कृति है।
हमारे बीच जाले बुनती और शिकार करती मकड़ियाँ
वे बहुत नन्हीं तो होती हैं लेकिन मकड़ियों का जीवन भी हमारी तरह अत्यन्त नाटकीय होता है। मकड़ियों को यह तय करना होता है कि वे अपने जाले कहाँ बनाएँ और भोजन कहाँ खोजें। कैसे अपने शत्रुओं से बचें, सम्भावित जोड़ीदार को कैसे ढूँदें और कैसे अपने शिशुओं का ख्याल रखें। है न दिलचस्प? आइए, हमारे साथ मकड़ियों के दिलचस्प संसार को खोजिए।
अम्ल, क्षार और pH आयनीकरण से लेकर बफर घोल तक
विज्ञान में पढ़ाई जाने वाली कई 'अवधारणाओं के समान उत्तरोत्तर विकास का विचार अम्ल और क्षार की अवधारणा पर भी लागू होता है। इसका मतलब है कि हम एक ही अवधारणा से बार-बार विभिन्न स्तरों पर मुलाकात करते हैं और अपनी समझ को तराशते जाते हैं। स्कूलों में इस विषय को बहुत ही चलताऊ ढंग से पढ़ाया जाता है, उससे सम्बन्धित अवधारणाओं को गहराई से टटोलने की कोशिश करता है यह आलेख। उम्मीद है कि इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि कैसे आयनीकरण pH का निर्धारण करता है और किसी भी जलीय घोल की pH से तय होता है कि वह अम्ल की तरह बर्ताव करेगा या क्षार की तरह।
होमो लूडेन्स- खिलन्दड़ मानव
यो ज़े दे ब्लोक के साथ हुई अपनी बातचीत के कई दिनों बाद तक मेरा दिमाग इसी सवाल पर बार-बार वापस लौटता रहा: अगर सारा समाज भरोसे पर आधारित होता, तो कैसा होता?