नववर्ष के विश्वव्यापी त्योहार को मनाने के पीछे कई धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मान्यताएं रही हैं। ऐसे सभी त्योहार जो प्राचीन समय से व्यापक रूप से मनाए जाते रहे, इनका संबंध धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव से है। यह नवजीवन के शुद्धिकरण, स्फूर्ति और उल्लास के द्योतक हैं। यह नवजीवन ही नववर्ष का सार है। यह विश्व संस्कृति में सुस्पष्टता की मात्रा से परिवर्तित या घटता-बढ़ता रहता है। जिसकी व्यवस्था से ब्रह्मांड और देवता शक्तिशाली बने, नववर्ष ब्रह्मांड रचना की पुनरावृत्ति के रूप में उसकी रचना पर प्रतीकात्मक वर्षगांठ है।
नववर्ष की शुरुआत
विश्व में मनाए जाने वाले त्यौहार की श्रृंखला में नववर्ष का त्योहार सबसे पुराना है। नववर्ष का शुभारंभ सर्वप्रथम किस देश में हुआ इस संबंध में शोधकर्ताओं में विभिन्न मत हैं। कुछ तो यह मानते हैं कि नववर्ष की सर्वप्रथम शुरुआत चीन से हुई, कुछ का मानना है कि जर्मन से और कुछ यह मानते हैं कि रोमन्स द्वारा इसकी शुरुआत की गई।
प्राचीन समय में चीन में नववर्ष का बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता था, जो तीन दिन तक चलता था। नववर्ष पर बधाई भेजने की प्रथा भी काफी पुरानी है। चीनी लोग दस हजार वर्ष पहले से ही बधाई पत्र भेजते चले आ रहे हैं। इन बधाई पत्रों पर प्राप्त करने वाले का नाम होता था, लेकिन बधाई संदेश नहीं होते थे।
नववर्ष का संबंध मौसम के परिवर्तन से
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सर्दियों में भी रखें वास्तु का ख्याल
सर्दी के इस मौसम में कुछ वास्तु उपाय करके आप सकारात्मक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं कौन से हैं वो उपाय आइए लेख के माध्यम से जानें?
विश्व का महापर्व नववर्ष
विश्व के सभी देशों की अपनी अलग परंपराएं और पर्व होते हैं। किन्तु नववर्ष एक ऐसा पर्व है जो सभी देशों द्वारा एक साथ मनाया जाता है। भले ही इस पर्व को मनाने के तरीके अलग हों।
हम नित्य नवीन हों
जीवन में नवीनता का अर्थ क्या है नित्य नवीनता, नित्यनूतन सकारात्मकता। उस परमात्मा के उद्देश्य को पूर्ण करना जिसने बड़े प्रेम से सृष्टि और मनुष्य की रचना की है, इस शरीर में सब कुछ होते हुए भी प्राण निकलने पर इस शरीर में दुर्गंध आने लगती है। अगर हम एक पेंटिंग बनाते हैं तो हम कितने खुश होते हैं यदि कोई पेंटिंग खराब कर दे तो हमें कितना बुरा लगता है। हम सब ईश्वर की बनाई हुई एक सुन्दर कृति हैं हम जब बुरे कर्म करते हैं तो उस परमेश्वर को कितना दुख होता होगा, नवीन हम तभी बनेंगे जब हम नकारात्मक विचार त्यागेंगे और जीवन के सकारात्मक उद्देश्य को आत्मसात करेंगे। महात्मागांधी ने कहा है -
सामाजिक आदर्श का प्रतीक बने कुम्भ मेला
स्नान, दान का महापर्व कुम्भ आस्था का ऐसा मेला है जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु जन पहुंचते हैं। मेला किन अर्थों में महत्त्वपूर्ण व किस प्रकार सामाजिक आदर्श का प्रतीक बन सकता है। आइए जानते हैं लेख से।
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