आज़ादी की अगस्त पीठिका
Aha Zindagi|August 2024
वह साल बयालीस था । अगस्त का भीगता मौसम भारतीयों के मन में प्रज्वलित स्वतंत्रता की अग्नि को ठंडी करने के स्थान पर और भी प्रचंड कर रहा था। इसी के फलस्वरूप जन्मी एक क्रांति जो हमारी बहुप्रतीक्षित आज़ादी की नींव बनी। अगस्त के उसी आगाज़ का रोचक वृत्तांत पूर्वपीठिका और परिणति के साथ।
शिवेंद्र सिंह
आज़ादी की अगस्त पीठिका

1939 का यूरोप का विषैला वातावरण, जहां जर्मनी का हिटलर यूरोप के नए-नए इलाके क़ब्जाता जा रहा था, तब ग्रेट ब्रिटेन ने 3 सितंबर 1939 को युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर दी। पीछे-पीछे कुछ ही घंटों में भारत के गवर्नर जनरल लिनलिथगो ने ब्रिटेन के औपनिवेशिक गुलाम देश, हमारे भारत को भी भारतीयों से मश्वरा किए बग़ैर ही युद्ध में झोंक दिया। इससे हालांकि हमारे सभी राष्ट्रीय नेतागण बहुत क्रुद्ध हुए, पर पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि इस नाज़ुक मौके को भारत की आज़ादी के लिए ब्रिटेन से सौदेबाज़ी की तरह इस्तेमाल किया जाए। महात्मा गांधी भी अभी देखो और समझो जैसी ऊहापोह में थे। सार यही कि कांग्रेस अपना रवैया नरम रखे हुई थी। फिर ऐसा क्या घटनाक्रम हुआ कि 1942 में अगस्त क्रांति अर्थात भारत छोड़ो आंदोलन का सूत्रपात हुआ और भारतीय जनता ने इसे राष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम का अंतिम समर बना दिया ! इस क्रांति के कारण अंग्रेज़ों को भारत में उनका साम्राज्यवादी, उपनिवेशवादी, अभिमानपूर्ण गगनचुंबी महल दरकता दिखाई देने लग गया और 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के साथ यह महल ज़मींदोज़ हो गया।

1939 की दुनिया और हम

この記事は Aha Zindagi の August 2024 版に掲載されています。

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September 2024
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September 2024
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