आदत छूटे तो आज़ादी मिले
Aha Zindagi|October 2024
बुरी आदतें तो ख़ैर त्याज्य हैं ही, पर अच्छी आदतों की भी बुरी बात यह है कि उनके चलते हम यंत्रवत हो जाते हैं, मशीन की तरह जीने लगते हैं। इसलिए आदत कैसी भी हो, उसे छोड़ना ज़रूरी है, ताकि हम अपनी स्वतंत्र हस्ती को जान पाएं।
अमृत साधना
आदत छूटे तो आज़ादी मिले

आदत में न जाने क्या बात है कि जो इसके चंगुल फंसता है वह इससे बाहर नहीं निकल पाता। वह मन को पकड़ लेती है जोंक की भांति। मनुष्य जैसा बुद्धिमान प्राणी भी कहता है- आदत से लाचार हूं। कैसी है यह लाचारी? कहते हैं, आदतें दूसरा स्वभाव होता है इसलिए उन्हें बदलना मुश्किल होता है। बड़े-बड़े लोग इनके जाल से उबर नहीं पाए। आइए, इस महाठगिनी आदत का अवलोकन करते थोड़ी मन की बनावट देखें तो इसे समझ पाएंगे।

आख़िर आदत बनती कैसे है?

मन एक यंत्र है, ठीक कंप्यूटर जैसा। कंप्यूटर में एक बार डेटा डाल दिया जाए तो वह उसका अभिन्न अंग हो जाता है। मस्तिष्क के जो केंद्र यानी न्यूरो सेंटर्स हैं वे भी बायो कंप्यूटर हैं। कई केंद्र हैं जो मनुष्य के विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करते हैं। आदतों और भावनाओं का नियंत्रण करने का एक केंद्र है जो मस्तिष्क के बीचोंबीच है, उसका नाम है बेसल गैंगलिया। इस केंद्र का काम है भावनाओं को नियोजित करना, स्मृतियों को संजोना और आदतों को सम्हालना। जब हम कहते हैं कि हम आदत के अधीन हैं तो वस्तुतः हम अपने मस्तिष्क की तंत्रिकाओं के अधीन होते हैं।

この記事は Aha Zindagi の October 2024 版に掲載されています。

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