पचहत्तर देशों में मंकीपॉक्स के 16,000 से ज्यादा मामलों को ध्यान में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 23 जुलाई को इसे अंतराष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया. साल 1958 में पहली बार खोजा गया यह वायरस बीते कुछ महीनों तक ज्यादातर मध्य और पश्चिमी अफ्रीका तक सीमित था, लेकिन अब यह दुनिया भर में तेजी से पांव पसार रहा है. भारत में अब तक इसके चार मामले सामने आ चुके हैं. वायरोलॉजिस्ट (विषाणुविज्ञानी) डॉ. गगनदीप कंग कहती हैं, "पिछले मामले तब आए थे जब लोगों ने एंडेमिक जोन की यात्रा की थी. जब यह वायरस वहीं तक सीमित था, यह कम चिंता का विषय था, पर अब दुनिया भर में मामले सामने आ रहे हैं और यह तेजी से फैल रहा है."
मंकीपॉक्स के कुछ लक्षण चेचक के समान ही होते हैं, वैसे चिकित्सकीय रूप से यह कम गंभीर है. अफ्रीका में पिछले प्रकोपों के दौरान इस बीमारी की शुरुआत बुखार, थकान और लिम्फ नोड में सूजन जैसे फ्लू के लक्षणों से हुई थी और इसके लगभग एक हफ्ते बाद पहले चेहरे और फिर हाथों तथा पैरों पर पीड़ादायक फफोले निकले. 10 से 200 गांठ वाले फफोलों के आकार तेजी से बढ़ सकते हैं और बड़े होने के बाद इनमें पस (मवाद) भर सकता है. संक्रमण जैसे-जैसे बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे फफोले बड़े होने के बाद फटते जाते हैं और एक पपड़ी बनने लगती है. मुंबई की संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. अनीता मैथ्यू कहती हैं, “अगर आप इन पपड़ियों को खरोंचते हैं, तो वे चिकनपॉक्स की तरह ही त्वचा पर निशान छोड़ सकते हैं." वैश्विक स्तर पर प्रकोप के साथ, मंकीपॉक्स के स्वरूप में कुछ बदलाव की सूचना भी है. कई संक्रमित लोगों में फ्लू जैसे लक्षण नहीं में उभरे और उनके जननांगों के पास सिर्फ एक - दो खुले घाव या फिर मवाद से भरे फफोले बने. मेदांता अस्पताल, गुरुग्राम में आंतरिक चिकित्सा की वरिष्ठ निदेशक डॉ. सुशीला कटारिया कहती हैं, "इसके बारे में अभी भी बहुत कुछ जानने को शेष है कि वायरस अपने एंडेमिक जोन के बाहर आने के बाद कैसा व्यवहार करेगा.
この記事は India Today Hindi の August 10, 2022 版に掲載されています。
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