राजस्थान के देवडूंगरी की धूल भरी गलियों में एक क्रांति ने खामोशी से अपनी जड़ें जमा लीं. मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) की अरुणा रॉय, निखिल डे और शंकर सिंह के नेतृत्व में किसानों ने मस्टर रोल सुलभ कराने की मांग की. ये रोजगार के साधारण रिकॉर्ड होते हैं जो व्यवस्थागत भ्रष्टाचार का रहस्य छिपाते थे. पारदर्शिता की उनकी मांग जल्द ही एक राष्ट्रीय आंदोलन में बदल गई, जिसका नतीजा सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई), 2005 के रूप में निकला. यह एक क्रांतिकारी कानून था.
सोनिया गांधी और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद, जिसकी रॉय भी सदस्य थीं, से प्रेरित होकर इस कानून को 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने अधिनियमित किया. यह अधिनियम भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की आधारशिला बना, जिसने नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से सूचना हासिल करने का कानूनी अधिकार दिया. आरटीआइ कानून ने 1923 के सरकारी गोपनीयता कानून जैसे अंग्रेजों के जमाने के कानूनों के अवशेष, गोपनीयता की व्यापक संस्कृति को खत्म करके आम भारतीयों को नौकरशाहों और राजनेताओं को जवाबदेह ठहराने का अधिकार दिया.
この記事は India Today Hindi の January 01, 2025 版に掲載されています。
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